नादान की नादानी
नीचे जमीं ऊपर आसमान रहने दो, समझदार बनो तुम मुझे नादान रहने दो ।
रविवार, सितंबर 12, 2010
यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
फेमिना के बगल में शिखर उनके बगल में अनसु लखनऊ की दिलकुशा कालोनी में ईद के मौके पर .............हैप्पी ईद
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
जज्बात
गुनाह कुछ ऐसा किया है मैंने दोस्त नाम दुश्मन को दिया है मैंने खुद और खुदा की पहचान सिर्फ जिंदगी को अकेले ही जिया है मैंने .........दोस्त मेर...
नादानी
ढॅूढतेे हो छायीं पेड़ को उखाड़कर, बने हैं कई मकान रिश्ते बिगाड़कर, तालीम भी तुमसे बदनाम हो गयी, पायी है डिग्री जो तुमने जुगाड़कर, ...
(शीर्षकहीन)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें