बुधवार, अप्रैल 08, 2020

भय बिन होय न प्रीत.....


भय बिन होय न प्रीत......इन पाॅच शब्दों में गहरा रहस्य छिपा है कि जब भी मनुष्य पर मुसीबत आती है तो वो उस मुसीबत से निजात दिलाने वाले लोगों के लिए कितना संस्कारी और नरम हो जाता है, भले ही सामान्य दिनों में अपशब्दों से लेकर मारपीट करने में पीछे न रहता हो, जब कारगिल का युद्व चल रहा था तो लोगो में सेना के प्रति सम्मान चरम पर था, भले ही फौजी भाई को रेल मे बैठने को सीट न दें, गाॅव मे उनकी जमीन कब्जा कर लें, इस दौर में जो सम्मान उनका मिल रहा था उसमें उनके कर्म से ज्यादा अपनी सुरक्षा नजर आ रही थी।
आज के अखबर में एक तस्वीर छपी, देखी, पढ़ी मन में कुछ विचार आए जो आपके सामने साझाा कर रहा हूॅ, तस्वीर इस लेख के नीचे दिख रही है। कोरोना से लड़ने वाले इज्जतकर्मियों का सम्मान किया गया। (इज्जतकर्मी नाम मोदी जी ने दिया है, हालांकि लोग इस नाम को प्रयोग करने मे इज्जत महसूस नही करते हैं ) इसके अलावा शीतला माता के हाथ में झाड़ू  इज्जतकर्मियों की महत्ता पर प्रकाश डालने के लिए काफी है ।  
यह वो इज्जतकर्मी हैं जो हर मौसम में मौसम के सितम सहता है, महसूस कीजिए आपके गल्ली मोहल्ले और शहर की सलामती के लिए ये खुद को जोखिम में डाले हुए हैं, उसके बावजूद इसे संस्थाएं एंव ठेकेदार कटौती करके तीन तीन महीने बाद वेतन देते है, दो कौड़ी का व्यक्ति भी गाली दे देता है, दबंग क्षेत्रीय व्यक्ति या नेता जरा सी बात पर पूरे खानदान को तौल देता है । कलेजा हिल जाता है जब अखबार में खबर आती है कि 23 साल का कल्लू सीवर में दम    घुटने से मरा, पिछले महीने हुई थाी शादी।
क्या कल्लू का गुनाह यह था कि वो परिवार को चलाने के लिए यह काम करता था या उसका गुनाह यह था कि वो इस काम के अलावा दूसरा काम क्यों नही कर रहा था।
दोस्तों, सम्मान के वास्तविक हकदार यही हैं, सिर्फ कोरोना काल में नही हर काल में, हम सबका जीवन और  सेहत साफ सफाई के वातावरण में ही सुरक्षित हैं, इसलिए आप सब से निवेदन है कि इनको हमेशा इज्जत दीजिए और एक फूल माला से नही अगर आप इसमें से किसी एक के बच्चे को उच्चशिक्षित होने में मदद कर दें तो आपका यह प्रयास समाज और देश के लिए हितकारी होगा। इनमें से कई इज्जतकर्मी तो ऐसे हैं जो यह सपना देखते हैं कि उनके बच्चे भी पढ़ लिखकर कुछ बन जाएं, इनके बच्चे योग्य भी है, लगनशील भी हैं, कमी है तो बस मार्गदर्शन की। अब गेंद आपके पाले में हैं कि आप मौकापरस्त हैं या वास्तविक और निरंतर इज्जत देने वाले।
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आज तक वेतन न लेने वाले मंत्री रविन्द्र जायसवाल UTTAR PRADESH

आज तक वेतन न लेने वाले मंत्री रविन्द्र जायसवाल की तारीफ

बैठक में यह बात भी सामने आई कि स्टांपए न्यायालय शुल्क एवं पंजीयन राज्यमंत्री ;स्वतंत्र प्रभार रविन्द्र जायसवाल ने विधायक बनने के बाद से अब तक कभी वेतन नहीं लिया है। इस पर मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों ने उनका आभार जताया। रविन्द्र पिछले आठ वर्ष से विधायक हैं। वह अपना पूरा वेतन मुख्यमंत्री के राहत कोष में जमा करते रहे हैं।

नकली गरीब बनाम असली गरीबः लाॅकडाउन के हवाले से





फिर नकली ने असली को पछाड़ दिया, मौका था महामारी कोरोना से दिक्कतों में आए परिवारों की मदद करने का, रमेश रावत एडवोकेट जी ने अपने पास से लगभग 400 लोगों के लिए आटा, चावल, तेल, दालें, साबुन आदि सामग्री  दो पैकेटों में तैयार करवायी, कई दिन गली गली घूमकर वास्तविक जरूरतमंद लोगों की सूची बनायी और उन्हें उनके घर पर ही पर्ची वितरित कर दी गयी ताकि पात्र परिवार की सुव्यस्थित मदद की जा सके।
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दिनांक 7 अप्रैल 2020, दिन मंगलवार, नई बस्ती निलमथा के बाबा साहब की मूर्ति वाले प्रांगण को वितरण स्थल के रूप में उपयोग किया गया,  सवेरे नौ बजे से ही जरूरतमंदों का आना शुरू हो गया, लगभग एक एक मीटर की दूरी पर गोले बनाए गए थे, वितरण टेबल के पास ही एक व्यक्ति पर्ची लेकर रजिस्टर में मिलान करता और सामग्री देने के लिए कह देता, उससे पहले एक व्यक्ति हाथों का सैनेटाईजर भी करवा रहा था, प्रांगण में कुर्सियाँ पड़ी थी, आसपास के लगभग सभी वर्गों और समुदाय के लोग जाति धर्म, पद प्रतिष्ठा, दल राजनीति, अमीरी गरीबी सबसे ऊपर उठकर इस मानवता को समर्पित आयोजन में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे, प्रमुखतः देवेन्द्र धुसिया जी, रामस्वरूप जी, रामसेवक जी,  विजय कुमार जी,  एडवोकेट अनिल जी,  चन्दर जी,  छोटू जी,  सुरेश रावत जी, संजय कुमार जी आदि। कुछ चेहरे जिनके नाम मै नही जानता वो भी सेवा मे लगे थे।
वाल्मीकि आश्रम सेवा समिति भगवन्त नगर निलमथा लखनऊ के पदाधिकारियों को भी उनके सामाजिक योगदान को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग के अनुपालन में आमंत्रित किया गया था,  जिसमें प्रमुखतः महामंत्री चन्द्रकुमार वाल्मीकि जी सेवानिवृत्त समीक्षा अधिकारी, मदन प्रभु जी, सुरेश फौजी जी भी उपस्थित थे।
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डाटा के माध्यम से चावल आटा बॅटने की ये खबर यानि सोशल मीडिया के इस दौर में क्षेत्र में जगल में आग की तरह फैल गयी कि मुफ्त राशन बाँटा जा रहा है। मुफ्त नाम से मुहब्बत हो जाना मानव की पहली प्राथमिकता है, ऊपर से नीचे तक जो जहाँ पर विराजमान है वो मुफ्तमय होने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है।
अभी तक यह भूमिका थी, पिक्चर अब शुरू होने वाली है, ध्यान से पढ़कर कमेन्ट करिएगा की क्या मैं आँखों देखे हाल का सन्तुलित विश्लेषण कर पाया हॅू या नही ?
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दो युवा लड़के जिनकी आयु लगभग 18 से 20 साल की होगी लगभग एक लाख मूल्य वाली लाल रंग की बाईक से आए, उनमें से एक लड़का फिल्मी हीरों की तरह सड़क किनारे गाड़ी खड़ी करके अपने सिर के सो रहे बालों को अपने हाथों से कई बार जगाता रहा और विभिन्न प्रकार की मुख मुद्रा बनाकर चारों तरफ ऐसा देखता है मानो कि वो किसी दूसरे ग्रह का निवासी हो,  दूसरा लड़का रमेश जी के पास आया उनके एक तरफ चन्द्रकुमार वाल्मीकि जी दूसरी तरफ मैं बैठा था,  लड़के ने जेब से पर्ची निकाली और कहा अंकल ये मेरी पर्ची है, मेरा दोस्त भी बहुत गरीब है उसकी भी पर्ची बना दीजिए, रमेश जी ने प्रश्न किया दोस्त कहॅा है ? उस लड़के ने बाईक सवार की तरफ ईशारा किया वो है। चन्द्रकुमार जी और मैं एक से डेढ़ लाख मूल्य की बाईक पर आए उस गरीब को देखकर हैरान हो गए । हालांकि बाईक सवार गरीब को राशन नही मिला और न ही मिल सकता था क्योंकि यहाँ सब पूर्वनियोजित पर्ची व्यवस्था थी।
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कुछ शक्ल से ही गरीब दिखने वाले लोगों को जिनका नाम सूची में नही था शाम को आने को कहा गया ताकि सूचीबद्व लोगों के बाद उन्हें उपलब्धता के अनुसार समायोजित किया जा सके। मैने रमेश जी को एक सुझाव दे दिया और उन्होने मान लिया, सुझाव यह था कि जो लोग बिना पर्ची के आ रहे हैं उनका नाम लिख लिया जाए और शाम को उन्हें इसी वरिष्ठता से राशन दे दिया जाएगा। मेरा यह सुझाव ठहरे हुए पानी में कंकड़ मारने जैसा अनुपयोगी साबित हुआ । मौके की नजाकत को देखते ही उपलब्ध अवसर का नाजायज फायदा उठाते हुए एक साहब ने तो पूरे मोहल्ले और परिवार के सारे लोगों का नाम लिखवा दिया, थोड़ी देर में वो सभी नामजद लोग वितरण स्थल पर पधार भी गए। आखिरकार नाम लिखने का मेरा यह सुझाव तत्काल प्रभाव से बन्द करना पड़ा। इस बीच समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष श्री जयसिंह जयन्त भी पधारे, अपने हाथों से कुछ जरूरतमन्दों को राशन वितरण किया और उन्होनें रमेश जी की व्यवस्था की भूरि भूरि प्रशंसा भी की।
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आईए, आगे चलते हैं, गरीबी तो शक्ल और पहनावे से ही झलकती है, यहाँ एक माताजी आयी जो ठीकठाक ब्रांड के वस्त्र पहने थी, माँग में चौड़ा भरा सिन्दूर गवाह था कि उनके यहाँ पति महाराज किसी न किसी तरह से घर चला ही रहे होंगे,  श्री रमेश जी से उन्होंने तत्काल कोटे के तहत अपना नाम दर्ज कर राशन के पैकेट दिए जाने का फरमान सुनाया, जोकि रमेश जी ने यह कहकर मना कर दिया कि यह सिर्फ गरीबों के लिए है। इस पर माताजी का जवाब बिल्कुल झन्नाटेदार था, यहाँ कौन गरीब है बताओ ? इस सवाल के जवाब में रमेश जी ने हाथ जोड़कर सर झुका लिया।
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इसके अलावा कुछ महिलाएं सोलह श्रृंगार से आगे निकलकर लगभग बीस बाईस श्रृंगार तीन तीन बिछिए, दो दो मंगलसूत्र एक सोने का एक आर्टिफिशियल  और तमाम आधुनिक आभूषणों और फैशन से सुसज्जित साड़ियों के साथ  भी राशन प्राप्ति वाली पंक्ति में लगी थीं और वो अकेली नही दो चार अपने स्टेटस वाली सहेली भी साथ लायीं थीं। ये महिलाएं अमीर तो नही थीं लेकिन मेरे अनुमान से ये गरीब भी कतई नही थी। मेरे पास में बैठे एक सज्जन ने मुझसे ही सवाल किया भाई क्या ये गरीब हैं, मैंने कहा हाँ भाई, मुफ्त का चन्दन, घिस मेरे नन्दन वाली श्रेणी के गरीब है ये।
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ओशो ने अपने एक लेख मे लिखा था कि इस देश को नकली चीजों ने ही बर्बाद रखा  है, नकली दवा, नकली गरीब, नकली नेता, नकली रिश्ते आदि इसी लेख को याद करके मैंने  इस संस्मरण को लिखा है,  इसका उद्देश्य  यह है कि हम नकली गरीब बनकर कब तक असली गरीबों  का हक मारते रहेंगे और असफल हो जाने पर आयोजक से ही सवाल करेंगे कि यहाँ गरीब कौन है ? रमेश जी जैसे समाज सेवी या सरकार से आँख मिचैाली खेलकर कुछ रूपयों का राशन लेकर हमारा जीवन कट जाएगा क्या ? कई लोग आलोचना करते दिखे और उनकी आलोचना का आधार था उनका नाम सूची में नही होना, हम त्याग, बलिदान और सेवा सिर्फ दूसरों से चाहते हैं खुद से नही, मुफ्त से मुहब्ब्त करके हम असली गरीबों का हक मार रहे हैं ।
अंततः मैने मौके पर जो देखा वो लिखा है, इस पोस्ट को सिर्फ मानवता के चश्में से पढ़ा जाए न कि अन्य से फिर भी जो लोग किसी और चश्में से पढ़ना चाहते हैं वो पढ़ सकते हैं यह उनका अपना अधिकार है, मैं अपने सीधे लिखने के लिए जिम्मेदार हॅू आपके उल्टे समझने के लिए नही । सादर सहित।
लेखक मुकेश नादान। दिनांक 8 अप्रैल 2020, बुधवार, लखनऊ