रविवार, अप्रैल 26, 2020

सुस्ती बनी चुस्ती

आप बीतीः लगभग एक सप्ताह से सवेरे सोकर उठने के बाद सुस्ती सी लगती थी, नींद भी पूरी ले रहा था हाॅ रात में सोने मे देर हो रही थी पढ़ने लिखने की आदत के कारण कभी किताबों से कभी कम्प्यूटर से ज्ञान समेटने के कारण समय से खुद को बिस्तर पर फैलाने में थोड़ी देर हो रही थी, चंचल मन ने सुस्ती का इल्जाम इन्हीं ज्ञान समेटने वाली विधाओं को देकर खुद को निर्दोष साबित कर दिया।
आज सवेरे उठने के लगभग एक घन्टे के बाद चित्त में ताजगी का जो संचार महसूस हुआ उसे शब्दों में बयान नही कर सकता बस आप महसूस कर सकते हैं, यह चमत्कार हुआ सवेरे डिजीटल पेपर पढ़ते पढ़ते रफी साहब, मुकेश साहब, लता जी, मो0अजीज जी, लक्ष्मीप्यारे जी, राजा मेहन्दी अली खाॅ जी के कुछ गााने सुनने के बाद। अब समझ में आया कि सुस्ती का कारण शारीरिक नही मानसिक था जो मनपसन्द गाने सुनकर चुस्ती में तब्दील हो गयी।

कोरोना योद्धाओं का काव्य सम्मान


सुनी हुई सड़कें सारी, आना जाना बन्द हुआ,
तन से उतरी न खाकी, और न थाना बन्द हुआ,

यूॅ ही नही कहते हैं लोग, धरती का भगवान इन्हें,
मन्दिरों मेें ताले लगे,  पर ना दवाखाना बन्द हुआ,

जान जोखिम में डालकर , पूरा देश सम्भालें हैं,
महामारी में सफाईवालों का, ना फर्ज निभाना बन्द हुआ,

मदद गरीबों की करने को, सरकार भी आगे आ गयी,
काम बढ़ा स्टाफ नही , ना बैंकों का खजाना बन्द हुआ

बिजली वाले भी डटे रहे, गैस वाले भी लगे रहे,
टी वी चैनल भी मुस्तैद रहे, अखबार  ना आना बन्द हुआ,

अफसर भी सतर्क दिखे, भोजन राशन बाॅट रहे,
सोशल मीडियाबाजों का, ना इल्जाम लगाना बन्द हुआ,

आटा की दिक्कत हुई पर, डाटा खूब भरपूर मिला,
रामायण दिखा दूरदर्शन का, ना पुण्य कमाना बन्द हुआ,

नादान यह समझ लो तुम  लाॅकडाउन में घर में रहना है
गया नही कोरोना अभी ना यमराज का आना बन्द हुआ ।

जिन्दगी जीने को एक फसाना होना चाहिए रिश्तों में  नादान रूठना और मनाना चाहिए  परिन्दे भी घोसला छोड़ देते हैं दाना चुगने के लिए अपने लिए रोटी  ...