नादानी

ढॅूढतेे हो छायीं पेड़ को उखाड़कर,
बने हैं कई मकान रिश्ते बिगाड़कर,

तालीम  भी तुमसे बदनाम हो गयी,
पायी है डिग्री जो तुमने जुगाड़कर,

कोई देखे भी  तो  शर्मिन्दा न हो,
इन्सान है तू बस इतनी तो आड़कर,

बढ़ा रही है जो दूरियाॅ इन्सान में,
खत्म कर दो उन किताबों को फाड़कर,

जिसके लिए है नादान उसके नाम कीजिए
रखकर अपने पास ना हुस्न को कबाड़कर ।


नादान

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 05 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. तालीम भी तुमसे बदनाम हो गयी,
    पायी है डिग्री जो तुमने जुगाड़कर,... पैनी बात

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