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अप्रैल 5, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बेबसी

टूट ते बिखरते परिवार नज़र आते है खाक में मिलते संस्कार नज़र आते है भगवान भी रोता है यह देखकर मंदिरों से ज्यादा बार नज़र आते है ............ जिन हाथो ने उसे बनाया था काबिल बुढ़ापे में वोह बेबस लाचार नज़र आते है ........... मैयत से ज्यादा वसीयत की फ़िक्र में करीब मेरे रिश्तेदार नज़र आते है ............ सब बना रहे अलग आशियाना वजूद मिट जाने के आसार नज़र आते है ................ जिसने बनाई हैसियत तुम्हारी बुढ़ापे में क्यों बेकार नज़र आते है ........... क्यों न रोये सवेरे 'नादान' मेरी आँखे खून से लथपथ अखबार नज़र आते है .........