बेबसी


टूट ते बिखरते परिवार नज़र आते है
खाक में मिलते संस्कार नज़र आते है

भगवान भी रोता है यह देखकर
मंदिरों से ज्यादा बार नज़र आते है ............

जिन हाथो ने उसे बनाया था काबिल
बुढ़ापे में वोह बेबस लाचार नज़र आते है ...........

मैयत से ज्यादा वसीयत की फ़िक्र में
करीब मेरे रिश्तेदार नज़र आते है ............

सब बना रहे अलग आशियाना
वजूद मिट जाने के आसार नज़र आते है ................

जिसने बनाई हैसियत तुम्हारी
बुढ़ापे में क्यों बेकार नज़र आते है ...........

क्यों न रोये सवेरे 'नादान' मेरी आँखे
खून से लथपथ अखबार नज़र आते है .........







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

लघुकथा ----- Personal Vs Professional