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मार्च 11, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जज्बात

गुनाह कुछ ऐसा किया है मैंने दोस्त नाम दुश्मन को दिया है मैंने खुद और खुदा की पहचान सिर्फ जिंदगी को अकेले ही जिया है मैंने .........दोस्त मेरे ग़मों से तू हैरान न हो खुशियों को खुद छोड़ दिया है मैंने ........दोस्त तेरी दवा भी बेअसर हो गयी जहर कुछ ज्यादा ही पिया है मैंने ........दोस्त मिल गयी लाखो खुशियाँ मुझे नाम खुदा का एक बार लिया है मैंने .........दोस्त वो भूलकर खुश रहने लगे याद उनको भी नहीं किया है मैंने ............दोस्त मिल न जाये सजा गलतियों की खुद को नादान लिख लिया है मैंने .........दोस्त
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देश को आगे ले जाने के लिए देश के हर व्यक्ति को चाहे वोह भी किसी रुतबे पर क्यों न हो इन शब्दों का पालन करना चाहिए .........आप से नादान की यही गुज़ारिश है ...... जय हिंद ..... जय भारत
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मुकेश और शीतल ६ फ़रवरी २०१० को शाहजहाँ को याद करने पहुंचे मौका था शाहजहाँ के पहले निकाह के ४०० साल पूरा होना का १६१० में सफवी वंश की राजकुमारी जोकि मिर्ज़ा मुज़फ्फर हुसैन सफवी की पुत्री थी के साथ शाहजहाँ का पहला निकाह हुआ था । लाइक अहमद पेज संख्या १३४
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कुछ जुदा जुदा मेरे हुज़ूर नज़र आते है क्या बात है चश्मे बद्दूर नज़र आते है