ढॅूढतेे हो छायीं पेड़ को उखाड़कर, बने हैं कई मकान रिश्ते बिगाड़कर, तालीम भी तुमसे बदनाम हो गयी, पायी है डिग्री जो तुमने जुगाड़कर, कोई देखे भी तो शर्मिन्दा न हो, इन्सान है तू बस इतनी तो आड़कर, बढ़ा रही है जो दूरियाॅ इन्सान में, खत्म कर दो उन किताबों को फाड़कर, जिसके लिए है नादान उसके नाम कीजिए रखकर अपने पास ना हुस्न को कबाड़कर । नादान
गुनाह कुछ ऐसा किया है मैंने दोस्त नाम दुश्मन को दिया है मैंने खुद और खुदा की पहचान सिर्फ जिंदगी को अकेले ही जिया है मैंने .........दोस्त मेरे ग़मों से तू हैरान न हो खुशियों को खुद छोड़ दिया है मैंने ........दोस्त तेरी दवा भी बेअसर हो गयी जहर कुछ ज्यादा ही पिया है मैंने ........दोस्त मिल गयी लाखो खुशियाँ मुझे नाम खुदा का एक बार लिया है मैंने .........दोस्त वो भूलकर खुश रहने लगे याद उनको भी नहीं किया है मैंने ............दोस्त मिल न जाये सजा गलतियों की खुद को नादान लिख लिया है मैंने .........दोस्त
तुम ज्यादा थे या कम नशे में थे, हम कैसे बताएं खुद हम नशे में थे, जश्न जन्मदिन का पीकर मनाने वाले, मौत का मना रहे मातम नशे में थे, तेरी सितमगरी का कभी बुरा नही माना, हम पर किए गए तेरे सितम नशे में थे मुफ्त पीने वाले इफरात पीकर गिर पडे़, जेब से पीने वाले मिले कम नशे में थे, ज्यादा पीने वालों को छोड़ दिया पुलिस ने, जेल भेजे गए वो जो कम नशे में थे, खुशी के मौके पर पी लेता हूॅ थोड़ी सी ये कहने वाले नादान मिले हरदम नशे में थे । @ Nadan
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें