शुक्रवार, मार्च 05, 2010

महिला दिवस


जैसाकि ज्ञात है की हर वर्ष ८ मार्च को हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाकर कागजो में महिलाओं के विषय में बड़े बड़े वादे कर के तीनो लोको का जो सुख प्राप्त करते है वो शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है फिर भी मेरे कवि मन ने कुछ शब्दों के माध्यम से अपनी आवाज़ को बहार निकलने की कोशिश की है आसा है की मेरी गलतियों को इंगित कर मुझको कुछ सीखने का मौका देंगे
धन्यवाद्



महिला दिवस

शान माँ बहन की
और बढ़ाना चाहिए
बहु और बेटी में
फर्क मिटाना चाहिए

साल में एक दिन
मुझे कम लगता है
महिला दिवस हर घर में
रोज मानना चाहिए ..........................

झुक कर करे सलाम
जमाना उसको
बेटी को काबिल इतना बनाना चाहिए ..................महिला ...................

जन्म से पहले ही
उसे मौत दे देना
तुम्हारी इस आदत में बदलाव आना चाहिए ............महिला....................

बहु भी नज़र आये
बेटी अपनी
हर सास को
चस्मा ऐसा लगाना चाहिए ................महिला.......................

मुकेश " नादान "


पुलिस गाथा


पुलिस वालों तुम महान हो
कितने कष्ट उठाते हो
जादूगर भी हो तुम
रस्सी को सांप बनाते हो
चोर लुटेरे और हत्यारे
आ जाए गर शरण तुम्हारे
बाल न बांका होता उनका
इंटरपोल भी छाप मारे
उसके बदले किसी और को
उम्र क़ैद कटवाते हो ............जादूगर भी हो तुम

महिमा आपकी बड़ी निराली
हाथ में डंडा मुह में गाली
ले दे मामला शांत करते
वर्ना ले जाते कोतवाली
निर्दोषों पर भी तुम
थर्ड डिग्री अपनाते हो ...........जादूगर भी हो तुम ...........