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हमारा भी बदन दुखता है.................................................

सो गए शांतिलाल, अचानक आयी इस आवाज ने शांतिलाल को नींद के बाॅर्डर से वापस बुला लिया, शांतिलाल ’बोले कौन है’ ? आवाज फिर आयी- हम हैं शांतिलाल । शांतिलाल- अरे हम कौन कोई नाम है तुम्हारा कि नही। उत्तर मिला- गजब आदमी हो शांतिलाल तुम हमारी आवाज भी नही पहचानते, सारा दिन पैरों से रौंदते हो और आवाज भी नही पहचानते। शांतिलाल बेचैन होकर उठ गए दरवाजा खोला बाहर झाॅका इधर उधर देखा कोई नही था। दरवाजा बन्द करके खटिया पर आकर बैठ गए। आवाज फिर आयी- शांतिलाल बोलते क्यों नही ? शांतिलाल - अरे यार कौन हो सामने क्यों नही आते, क्या भूत प्रेतों के खानदान से हो। ’इधर देखो शांतिलाल’ आवाज फिर आयी। शांतिलाल टिमटिमाते जीरो वाट के नाईट बल्ब की हल्की रोशनी में भारी मन की तेज आॅखों से  आवाज को तलाश करने लगे। आवाज को एहसास हो गया कि शांतिलाल सर्च मोड में हैं, शांतिलाल को ज्यादा मेहनत न करना पडे़ इसलिए उनकी मदद के लिए आवाज ने फिर पुकारा इधर देखो शांतिलाल इधर। आवाज की दिशा में देखते ही शांतिलाल चैंक गए और खड़े हो गए और 4जी की स्पीड से बोलने लगे अबे तू भी बोलने लगा होश मे तो है, औकात से बाहर आने पर तुझे डर नही लगा अ

लघुकथा

लघुकथा 01 रामू मिस्त्री समय से डाॅक्टर साहब के घर पहुॅच गया था, वो एक मरीज देख रहे थे । रामू को देखते ही बोले अरे बैठो मिस्त्री अभी चलता हूॅ। रामू बैठ गया। मरीज को डाॅक्टर साहब ने कुछ सलाह दी और कहा कि यह दवा बाजार से ले लेना । मरीज नमस्ते करके चलने लगा, डाॅक्टर अरे यार फीस तो दे जाओ, मरीज बोला डाॅक्टर साहब हम आप बचपन मे एक साथ खेले हैं दोस्त रहे हैं । डाॅक्टर ने कहा अरे भाई यह मेरा पेशा है इसमें दोस्ती को मत लाओ । मरीज बोला अरे तुमने सिर्फ सलाह ही तो दी है दवा तो बाहर से ही लेनी है मुझे। डाॅक्टर ने उत्तर दिया सलाह तो मैं तुम्हें तभी दे पाया ना जब मैं इस काबिल बना, लाओ मेरी फीस 500 रूपए समय बर्बाद मत करो। मरीज मायूस हो गया और फीस देकर चला गया। 02 डाॅक्टर साहब ने रामू मिस्त्री को लगभग एक घंटा  पूरा घर उपर से नीचे तक घुमाया कहाॅ क्या बनेगा उसमे क्या क्या सामान लगेगा कितने दिन लगेंगे कितने लोग काम करेंगे। रामू ने सब कुछ बताया। डाॅक्टर साहब बोले ठीक हैं फिर मिलते हैं, जब शुरू करेंगे तब मैं तुम्हें बुला लुॅगा, कहकर डाॅक्टर दरवाजा बन्द करने लगे। रामू ने कहा सर रूकिए यह लीजिए एक कागज डाॅ

रोटी की तलाश

चलो खत्म हुई, रोटी की तलाश बोली, हादसे के बाद, मजदूर की लाश बोली।

कोरोना काल में प्रासंगिक यह मुहावरा.....................जंगल मे मोर नाचा किसने देखा...........

       मेरे एक बहुत ही करीबी हैं उनसे क्या रिश्ता है मैं आज तक निर्धारित नही कर पाया हूॅ क्योंकि जिस भी रिश्ते के दायरे में उनको लाना चाहता हूॅ उनके व्यक्तित्व के आगे हर रिश्ता छोटा नजर आता है , फिर भी मैं उन्हें भैया कहता हॅू ।          उनका व्यक्तित्व उनके द्वारा ही निर्मित है, मंचों पर सम्मान प्राप्ति में उनका नाम उनके खानदान में सबसे टाॅप पर है, कमरे में जगह नही है, पुरस्कार और सम्मान में जो शील्ड मिली हैं वो रात में जगह प्राप्ति के लिए उधर खिसको दबे जा रहे हैं कहते हुए एक दूसरे से लड़ती हैं ।           हाॅ हर सम्मान के बाद अपने उद्बोधन में वो एक वाक्य को पिछले कई वर्षों से बोलते आ रहे हैं और वो यह कि आज मैं जो कुछ भी हूॅ उसका श्रेय अम्मा को जाता है । मेरी जानकारी में अपनी अम्मा और अपने बाबूजी को दो ही लोग हर मौके पर याद करते हैं, बाबू जी को याद करने वाले हैं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और अम्मा को याद करने वाले यह हमारे भैया साहब ।          हम दोनो अक्सर मौका मिलते ही चाय पर चर्चा कर लेते हैं स्थान निर्धारित नही है पर हम दोनो ही होंगे और चर्चा होगी यह निश्चित है, मैं
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लिखने वाले ने लिखी, हमारी किस्मत कितनी विचित्र है, माॅ को छीन लिया हमसे, रह गया पास  माॅ का चित्र है।

राजा और रंक सब कैद कोरोना में....................

करता तो वो मजदूरी का काम है, सुना है  पास  उसके   डिग्री तमाम है... हैराॅ हुआ देखकर गरीबों की  फेहरिस्त , गरीबे को छोड़, पूरे मोहल्ले का नाम है... अमीरों के माॅ बाप नौकरों के हवाले, ऐ गरीबों के बच्चों तुमको सलाम है... हो गए बदनाम मन्दिर ओ मस्जिद, जुबाॅ इंसान की कितनी बेलगाम है... अपनों की तहरीर पर लिखा मुकदमा, पुलिस तो बेचारी मुफ्त में बदनाम है... राजा और रंक सब कैद कोरोना में, आदमी कुछ नही वक्त का गुलाम है... मैं पड़ता नही जाति धर्म के चक्कर में, हिन्दू को नमस्ते, मुस्लिम को सलाम है... लड़का बिकाऊ है बाप बेच रहा है, शादी के नाम पर, दस लाख दाम है... बच्चो ने कर लिया कमरों में कब्जा, बाप है बाहर, मकान जिसके नाम है... ये मोहब्बत भी क्या चीज है नादान, ना उनको सुकून न हमको आराम है। नादान

Nadan

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नादानी

ढॅूढतेे हो छायीं पेड़ को उखाड़कर, बने हैं कई मकान रिश्ते बिगाड़कर, तालीम  भी तुमसे बदनाम हो गयी, पायी है डिग्री जो तुमने जुगाड़कर, कोई देखे भी  तो  शर्मिन्दा न हो, इन्सान है तू बस इतनी तो आड़कर, बढ़ा रही है जो दूरियाॅ इन्सान में, खत्म कर दो उन किताबों को फाड़कर, जिसके लिए है नादान उसके नाम कीजिए रखकर अपने पास ना हुस्न को कबाड़कर । नादान

LOCKDOWN .........04052020

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कुसूर सारा गरीब का

गजब नसीब उस बदनसीब का निकला, कातिल उसका, उसके करीब का निकला, अदालत ने अमीरों को बाईज्जत बरी किया, जाॅच में कुसूर सारा गरीब का निकला।
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आज की ताजा खबर: प्रदेश के सबसे बड़े कोरोना हाॅट स्पाॅट के नाम से चर्चा में आए कैन्ट लखनऊ के सदर बाजार स्थित कसाई बाड़ा क्षेत्र को अपनी मेहनत और सूझबूझ से रात दिन मेहनत करके स्थिति को काबू में करने वाले  पर्दे के पीछे के छावनी परिषद लखनऊ के योद्धाओं से रूबरू कराती खबर.............. कोरोना युद्ध में पर्दे के पीछे के असली हीरो जी हाॅ, पर्दे पर दिखने वाले हीरो के काम से बड़ा काम होता है पर्दे के पीछे के हीरो का जो दिखायी नही देता पर पर्दे के हीरो का रिमोट उसी के पास होता है,सही मायने में सफलता का असली हीरो यही रिमोटधारी होता है । इस खबर के माध्यम से जानिए प्रदेश के सबसे बड़े कोरोना हाॅटस्पाॅट के कुछ ऐसे ही पर्दे के पीछे के छावनी परिषद लखनऊ के हीरो को जिनकी मेहनत और सेवा से घटने लगी कोरोना पाॅजिटिव मरीजों की संख्या। चर्चा में आया सबसे बड़ा कोरोना हाॅटस्पाॅट क्षेत्र सदर बाजार का कसाई बाड़ा लखनऊ छावनी में ही स्थित हैं, इस क्षेत्र ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इतने संवेदनशील हाॅटस्पाॅट क्षेत्र के साथ ही सेना के मध्य कमान का मुख्यालय, कमान अस्पताल, बेस अस्पताल, ए0एम0सी0 सेन

नादानी

दो दिन में ही सदा के लिए दूर हुए, कल इरफान तो आज ऋषि कपूर हुए।

Chand Aahe Bharega28042020

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चाॅद आहें भरेगा फूल दिल थाम लेंगे .........वाह क्या सोच है लिखने वाले की मुकेश साहब का मशहूर गीत मेरी आवाज में, बेटी के जन्मदिन 28 अप्रैल 2020 को रिकार्ड किया मेरे बेटे शिखर और भतीजे अनन्त और अक्षत ने साथ दिया अर्पित एंव पूरे परिवार ने पेश है आपके सामने

Ai Phoolo ki Rani.28042020

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रफी साहब एक ऐसा नाम जो लाखों परिवारों की रोजी रोटी का साधन है और गम, खुशी, मोहब्बत हर त्योहारों, हर अवसरों पर उनके गाए गीत आज भी प्रासंगिक हैं। उन्हीं का एक गीत मेरी आवाज में, बेटी के जन्मदिन 28 अप्रैल 2020 को रिकार्ड किया मेरे बेटे शिखर और भतीजे अनन्त और अक्षत ने साथ दिया अर्पित एंव पूरे परिवार ने , पेश है आपके सामने

नादानी

बहुत दूर हर मुश्किल से निकल जाते, निकालते उन्हें और दिल से निकल जाते, दुनिया में कोई बुराई न दिखती नादान गर खुद इश्क की महफिल से निकल जाते।

Sochenge Tumhe pyar kare ki on

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श्रद्धांजलि ऋषि कपूर साहब को..................................................... 1992 में एक फिल्म आयी थी दीवाना जिसमें ऋषि कपूर साहब पर एक गााना फिल्माया गया था, गाने के बोल थे सोचेंगे तुम्हें प्यार करें की नही....28 अप्रैल को घर पर ही मैने यह गाना गया और बच्चों ने रिकाॅर्ड करके सोशल मीडिया में पर अपलोड किया। आज सवेरे ही खबर मिली की ऋषि कपूर साहब का निधन हो गया है। पुनः अपलोड है ये गीत ऋषि कपूर साहब को नमन करते हुए।

कोरोना योद्धाओं को समर्पित मेरी कविता

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कोरोना योद्धाओं को समर्पित मेरी कविता को अवधनामा अखबार ने  छापकर सम्मानित किया आपका आभार सम्पादक महोदय और आपकी टीम को लेकिन इन्होनें मुझे नादान मानने से इंकार कर दिया और मुकेश कुमार ही चित्र के साथ छापा है

जन्मदिन की शुभकामनाएं हमारी बिटिया रानी को,

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हम सबकी मुस्कान है बिटिया, सब रिश्तों की शान है बिटिया, तुम लायी हो घर मे खुशियाॅ यह तुम्हारा एहसान है बिटिया। जन्मदिन की शुभकामनाएं हमारी बिटिया रानी को, सदा मुस्कुराती रहो, सदा खुशियाॅ मेहरबान रहे, खूब करो तरक्की बेटा ऊॅची  सबकी शान रहे।......

सुस्ती बनी चुस्ती

आप बीतीः लगभग एक सप्ताह से सवेरे सोकर उठने के बाद सुस्ती सी लगती थी, नींद भी पूरी ले रहा था हाॅ रात में सोने मे देर हो रही थी पढ़ने लिखने की आदत के कारण कभी किताबों से कभी कम्प्यूटर से ज्ञान समेटने के कारण समय से खुद को बिस्तर पर फैलाने में थोड़ी देर हो रही थी, चंचल मन ने सुस्ती का इल्जाम इन्हीं ज्ञान समेटने वाली विधाओं को देकर खुद को निर्दोष साबित कर दिया। आज सवेरे उठने के लगभग एक घन्टे के बाद चित्त में ताजगी का जो संचार महसूस हुआ उसे शब्दों में बयान नही कर सकता बस आप महसूस कर सकते हैं, यह चमत्कार हुआ सवेरे डिजीटल पेपर पढ़ते पढ़ते रफी साहब, मुकेश साहब, लता जी, मो0अजीज जी, लक्ष्मीप्यारे जी, राजा मेहन्दी अली खाॅ जी के कुछ गााने सुनने के बाद। अब समझ में आया कि सुस्ती का कारण शारीरिक नही मानसिक था जो मनपसन्द गाने सुनकर चुस्ती में तब्दील हो गयी।

कोरोना योद्धाओं का काव्य सम्मान

सुनी हुई सड़कें सारी, आना जाना बन्द हुआ, तन से उतरी न खाकी, और न थाना बन्द हुआ, यूॅ ही नही कहते हैं लोग, धरती का भगवान इन्हें, मन्दिरों मेें ताले लगे,  पर ना दवाखाना बन्द हुआ, जान जोखिम में डालकर , पूरा देश सम्भालें हैं, महामारी में सफाईवालों का, ना फर्ज निभाना बन्द हुआ, मदद गरीबों की करने को, सरकार भी आगे आ गयी, काम बढ़ा स्टाफ नही , ना बैंकों का खजाना बन्द हुआ बिजली वाले भी डटे रहे, गैस वाले भी लगे रहे, टी वी चैनल भी मुस्तैद रहे, अखबार  ना आना बन्द हुआ, अफसर भी  सतर्क  दिखे, भोजन राशन बाॅट रहे, सोशल मीडियाबाजों का, ना इल्जाम लगाना बन्द हुआ, आटा की दिक्कत हुई पर, डाटा खूब भरपूर मिला, रामायण दिखा दूरदर्शन का, ना पुण्य कमाना बन्द हुआ, नादान यह समझ लो तुम  लाॅकडाउन में घर में रहना है गया नही कोरोना अभी ना यमराज का आना बन्द हुआ ।

रिश्ते का रिचार्ज कर दिया प्रधानमंत्री जी ने.........................

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भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की विधान सभा के माननीय अध्यक्ष व 403 माननीय विधायकों के मुखिया आदरणीय दीक्षित साहब जी का ऊर्जावान लेख

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मुख्यमंत्री योगी का पिता की मृत्यु होने पर भी प्रदेश को न छोड़ना एंव अंतिम दर्शन को न जाना एक ऐसी नजीर जिसने रिश्ते को नही सूबे की आवाम को तरजीह दी...................पढ़िए मुकेश नादान की कलम से

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          पिता से भी बढ़कर , आपके आवाम से रिश्ते निकले           हम तो इंसान समझे योगीजी आप तो   फरिश्ते निकले ।...नादान जी हाँ , ऊपर लिखी मेरी दो पंक्तियाँ बिल्कुल वाजिब हैं सूबे के सबसे बड़े राजनीतिक ओहदे पर बैठे सन्त की शान में जिसने 23 करोड़ प्रदेश की आवाम को कोरोना महामारी से निजात दिलाने के लिए फैसला किया कि वो मरहूम हुए पिता के आखिरी दीदार और जनाजे में शामिल नही होंगे। 20 अप्रैल 2020 को दोपहर को सारे टी 0 वी 0 चैनलों पर एक ही खबर बार बार दिखायी जा रही थी और वो खबर थी दिल्ली के एम्स में भर्ती आनन्द सिंह बिष्ट जी के निधन की , 90 साल के बिष्ट जी पिछले कुछ समय से बीमार थे और उनका इलाज नई दिल्ली के एम्स में चल रहा था । कभी कभी व्यक्ति का परिचय व्यक्ति के   व्यक्तित्व से बहुत बड़ा हो जाता है , यह सौभाग्य दिवंगत बिष्ट जी को मिला था अपने पुत्र के सुकर्मों से , जी हाँ देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता थे आनन्द सिंह बिष्ट जिनके देहान्त की खबर से पूरा देश शोकाकुल हो गया था। पिता के देहान्त की सूचना सुनकर कोई भी विचलित हुए बिना नही रह

लालफीताशाही के फेर

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सेवा में , माननीय मंत्री जी मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार , नई दिल्ली महोदय , सादर प्रणाम , माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान से प्रेरित होकर , लखनऊ की एक गरीब बच्ची साक्षी पुत्री श्री प्रेम लाल का कक्षा प्रथम में प्रवेश हेतु  फार्म केन्द्रीय विद्यालय लखनऊ में भरवाया था । गरीब , अनुसूचित जाति एंव बेटी होने के बावजूद साक्षी का प्रवेश राईट टू एजूकेशन की कैटेगरी मे नही हो सका। इसके बाद मैंने स्थानीय स्तर पर सकारात्मक सहयोग न मिलने के कारण इस बच्ची की फीस माफी हेतु माननीय प्रधानमंत्री जी तक निवेदन पहुंचाने के लिए  पीजी पोर्टल पर निवेदन किया जिसका सन्दर्भ नम्बर Grievance Status for registration number : PMOPG/E/2016/0175016 Date of Receipt 25/05/2016 Received By Ministry/Department Prime Ministers Office था। महोदय , बहुत ही अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केन्द्रीय विद्यालय के जिम्मेदारों ने माननीय प्रधानमंत्री जी से किए गए इस विशेष निवेदन को लालफीताशाही के फेर में डालकर नकारात्मक रूप से  प्रधानाचार्य ने इस जवाब के साथ कि आरटीई

लघुकथा.......नजरिया बदलो

अचानक शुरू हुई तेज बरसात से बचने के लिएा तमाम राहगीर एक बड़े से पीपल के पेड़ के नीचे खड़े हो गए, पेड़ बहुत विशाल और पुराना था उसकी जड़ में एक चबूतरा भी बना था जिस पर लोगों ने कई भगवानो की मूर्तियाॅ भी रख दी थी। बरसात रूकते ही सब लोग पुनः अपनी राह पर चलने के लिए पेड़ के साए से निकलने लगे। बरसात में रूके एक बुजुर्ग अपने साथ खड़े एक छोटे बच्चे का हाथ पकड़ते हुए चबूतरे पर रखे भगवानों के हाथ जोड़ते हुए निकलने लगे। बुजुर्ग के हाथ जोड़ने के कार्य को देख बच्चे को उत्सुकता हुई और उसने प्रश्न किया दादाजी आपने उन मूर्तियों को हाथ क्यों जोड़ा । ‘ बेटा जो मुसीबत में आपका साथ दे हाथ जोड़कर उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए, ऐसा हमारे धर्म में कहा गया है।’ बुजुर्ग ने बच्चे को जवाब दिया। बच्चे ने फिर सवाल किया ‘पर अपने धर्म में तो मूर्ति पूजा करना मना है, फिर आपने मूर्तियों के हाथ क्यों जोड़े।’ ‘बेटा हमारे धर्म में मूर्ति पूजा करना मना है लेकिन किसी दूसरे धर्म के भगवान का सम्मान करना थोड़ी मना है और अगर तुम्हें लग रहा है कि मैंने मूर्तियों को हाथ जोड़ा तो तुम अपना नजरिया बदल लो।’ बुजुर्ग ने कहा। बच्चे ने पूछा ‘

Request to the HRD Minister Ji

सेवा में, माननीय मंत्री जी मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार, नई दिल्ली महोदय, सादर प्रणाम, माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान से प्रेरित होकर, लखनऊ की एक गरीब बच्ची साक्षी पुत्री श्री प्रेम लाल का कक्षा प्रथम में प्रवेश हेतु  फार्म केन्द्रीय विद्यालय लखनऊ में भरवाया था । गरीब, अनुसूचित जाति एंव बेटी होने के बावजूद साक्षी का प्रवेश राईट टू एजूकेशन की कैटेगरी मे नही हो सका। इसके बाद मैंने स्थानीय स्तर पर सकारात्मक सहयोग न मिलने के कारण इस बच्ची की फीस माफी हेतु माननीय प्रधानमंत्री जी तक निवेदन पहुॅचाने के लिए  पीजी पोर्टल पर निवेदन किया जिसका सन्दर्भ नम्बर था। महोदय, बहुत ही अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केन्द्रीय विद्यालय के जिम्मेदारों ने माननीय प्रधानमंत्री जी से किए गए इस विशेष निवेदन को लालफीताशाही के फेर में डालकर नकारात्मक रूप से  प्रधानाचार्य ने इस जवाब के साथ कि आरटीई के तहत प्रवेश के लिए जो लाटरी डाली गयी थी उसमें आपके पाल्य का नाम नही निकला अतः आरटीई के तहत प्रवेश नही हुआ । अतः फीस माफी की सुविधा नही दी जा सकती है, समाप्त कर दिया।

रोता रहेगा दिल मेरा चैन से सो भी न पाऊॅगा, मेरे दायरे मे कोई भूखा हो तो मैं कैसे खाऊॅगा।......नादान

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कलमकार की कलम बड़ी चंचल होती है, जो उसका क्षेत्र नही होता वहाॅ भी पहुॅच जाती है, कुछ कर भले ही न पाए लेकिन लिखने से बाज नही आती, कुछ दिन पहले मेरे अन्दर एक मानसिक द्वंद्व चल पड़ा कि कोरोना के इस दौर में उन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों एंव समाज सेवकों की क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए जिनके  क्षेत्र के लोग बेरोजगार हो गए हों और परिवार के सामने  भूखों रहने की नौबत आ जाए। बस साहब, उठायी कलम और शेरों वाली दो लाईन लिख डाली, आज अखबार में देखा इन लाईनों को हेडलाईन्स बनते और साथ ही तस्वीर भी छपी उन महानुभावों की जो वास्तव में मानवकल्याण में आगे हैं। धन्यवाद, सम्पादक महोदय और आपकी टीम को आपके अखबार को।

किसी मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, जीना इसी का नाम है.......गायक मुकेश

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Shri Amit Kumar Mishra, IDES, CEO, Cantt Board, Lucknow रोता रहेगा दिल मेरा चैन से सो भी न पाऊॅगा, मेरे दायरे मे कोई भूखा हो तो मैं कैसे खाऊॅगा।                                                       नादान मेरे द्वारा लिखी गयी उपरोक्त पंक्तियाॅ सफेद कमीज में मुस्कुराते हुए हरदिल अजीज अधिकारी जोकि दूसरी तस्वीर में काली कैप और काले अपर पहने रोटी बेलते हुए महोदय पर सटीक बैठ रही है, यह तस्वीर है लखनऊ कैन्ट के सदर बाजार की जहाॅ पर भोजन बैंक में खाना तैयार हो रहा है, रोटी बेलते हुए साहब हैं श्री अमित कुमार मिश्रा जी, आई0डी0ई0एस0, सीईओ, छावनी परिषद, लखनऊ। 01. लाॅकडाउन के कारण क्षेत्रीय एंव आसपास के जरूरतमन्दों के साथ साथ छोटे और खुदरा काम करने वाले कामगारों को स्वंय के सहयोग से लगातार भोजन उपलब्ध कराने के निःस्वार्थ भाव से भोजन बैंक की स्थापना की शुरूआत की उपाध्यक्ष आदरणीय रूपा देवी जी ने और सहयोग दिया श्री रतन सिंघानिया जी, पूर्व उपाध्यक्ष, श्री अशफाक कुरैशी जी, पूर्व मा0 सदस्य, श्रीमती रीना सिंघानिया जी,मा0 सदस्य, श्री संजय दयाल वैश्य जी,मा0 सदस्य,  श्री अमित शुक्ला जी,मा

जयसंविधान वोट की ताकत ...................

मनुष्य जिन पैरों के सहारे खड़ा होता है और जिस पीठ और नीचे के हिस्से के सहारे लेटता बैठता है उनको ही सबसे ज्यादा नजरअंदाज करता है, उसका पूरा ध्यान चेहरे को चमकाने मे लगा होता है, लेकिन जो पैर उसके जीवन को गतिमान बनाते हैं,  पीठ और नीचे का जो हिस्सा उसको सबसे ज्यादा आराम देते है, उनकी वो सबसे ज्यादा उपेक्षा करता है। यही हाल हमारे कुछ जनप्रतिनिधियों का है, जिनके वोट से और जिस जनता के लिए उन्हें पद और प्रतिष्ठा मिली है वो उनको नजर अन्दाज करके सारी निष्ठा और समर्पण  राग दरबारी ( इसे आम भाषा में चमचागिरी कहते हैं) के साथ साथ  पार्टी आलाकमान, देश मुखिया, प्रदेश मुखिया और भिन्न भिन्न प्रकार के  मुखियाओं के इर्द गिर्द ही  रहती है। कोरोना महामारी भी हमारे कुछ जनप्रतिनिधियों के आचरण और व्यवहार को बदल नही पायी, ऐसे महानुभाव के वर्तमान आचरण से प्रेरित होकर ही मतदाता भविष्य के मतदान से उनको हमेशा के लिए इतिहास बना देता है, क्योंकि वोट रूपी पवित्र ताकत अभी भी उस गरीब के पास ही है और रहेगी जिसको आप नजरअंदाज कर रहे हैं, आपकी बेरूखी और लफ्फाजी तो उसके वोट की ताकत को कम नही कर पाएगी लेकिन उसकी बेरूखी आ

भय बिन होय न प्रीत.....

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भय बिन होय न प्रीत......इन पाॅच शब्दों में गहरा रहस्य छिपा है कि जब भी मनुष्य पर मुसीबत आती है तो वो उस मुसीबत से निजात दिलाने वाले लोगों के लिए कितना संस्कारी और नरम हो जाता है, भले ही सामान्य दिनों में अपशब्दों से लेकर मारपीट करने में पीछे न रहता हो, जब कारगिल का युद्व चल रहा था तो लोगो में सेना के प्रति सम्मान चरम पर था, भले ही फौजी भाई को रेल मे बैठने को सीट न दें, गाॅव मे उनकी जमीन कब्जा कर लें, इस दौर में जो सम्मान उनका मिल रहा था उसमें उनके कर्म से ज्यादा अपनी सुरक्षा नजर आ रही थी। आज के अखबर में एक तस्वीर छपी, देखी, पढ़ी मन में कुछ विचार आए जो आपके सामने साझाा कर रहा हूॅ, तस्वीर इस लेख के नीचे दिख रही है। कोरोना से लड़ने वाले इज्जतकर्मियों का सम्मान किया गया। (इज्जतकर्मी नाम मोदी जी ने दिया है, हालांकि लोग इस नाम को प्रयोग करने मे इज्जत महसूस नही करते हैं ) इसके अलावा शीतला माता के हाथ में झाड़ू  इज्जतकर्मियों की महत्ता पर प्रकाश डालने के लिए काफी है ।   यह वो इज्जतकर्मी हैं जो हर मौसम में मौसम के सितम सहता है, महसूस कीजिए आपके गल्ली मोहल्ले और शहर की सलामती के लिए ये खुद

आज तक वेतन न लेने वाले मंत्री रविन्द्र जायसवाल UTTAR PRADESH

आज तक वेतन न लेने वाले मंत्री रविन्द्र जायसवाल की तारीफ बैठक में यह बात भी सामने आई कि स्टांपए न्यायालय शुल्क एवं पंजीयन राज्यमंत्री ;स्वतंत्र प्रभार रविन्द्र जायसवाल ने विधायक बनने के बाद से अब तक कभी वेतन नहीं लिया है। इस पर मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों ने उनका आभार जताया। रविन्द्र पिछले आठ वर्ष से विधायक हैं। वह अपना पूरा वेतन मुख्यमंत्री के राहत कोष में जमा करते रहे हैं।

नकली गरीब बनाम असली गरीबः लाॅकडाउन के हवाले से

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फिर नकली ने असली को पछाड़ दिया , मौका था महामारी कोरोना से दिक्कतों में आए परिवारों की मदद करने का , रमेश रावत एडवोकेट जी ने अपने पास से लगभग 400 लोगों के लिए आटा , चावल , तेल , दालें , साबुन आदि सामग्री  दो पैकेटों में तैयार करवायी , कई दिन गली गली घूमकर वास्तविक जरूरतमंद लोगों की सूची बनायी और उन्हें उनके घर पर ही पर्ची वितरित कर दी गयी ताकि पात्र परिवार की सुव्यस्थित मदद की जा सके। (2) दिनांक 7 अप्रैल 2020, दिन मंगलवार , नई बस्ती निलमथा के बाबा साहब की मूर्ति वाले प्रांगण को वितरण स्थल के रूप में उपयोग किया गया ,   सवेरे नौ बजे से ही जरूरतमंदों का आना शुरू हो गया , लगभग एक एक मीटर की दूरी पर गोले बनाए गए थे , वितरण टेबल के पास ही एक व्यक्ति पर्ची लेकर रजिस्टर में मिलान करता और सामग्री देने के लिए कह देता , उससे पहले एक व्यक्ति हाथों का सैनेटाईजर भी करवा रहा था , प्रांगण में कुर्सियाँ पड़ी थी , आसपास के लगभग सभी वर्गों और समुदाय के लोग जाति धर्म , पद प्रतिष्ठा , दल राजनीति , अमीरी गरीबी सबसे ऊपर उठकर इस मानवता को समर्पित आयोजन में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे , प्रमुख