कोरोना काल में प्रासंगिक यह मुहावरा.....................जंगल मे मोर नाचा किसने देखा...........

       मेरे एक बहुत ही करीबी हैं उनसे क्या रिश्ता है मैं आज तक निर्धारित नही कर पाया हूॅ क्योंकि जिस भी रिश्ते के दायरे में उनको लाना चाहता हूॅ उनके व्यक्तित्व के आगे हर रिश्ता छोटा नजर आता है , फिर भी मैं उन्हें भैया कहता हॅू । 

        उनका व्यक्तित्व उनके द्वारा ही निर्मित है, मंचों पर सम्मान प्राप्ति में उनका नाम उनके खानदान में सबसे टाॅप पर है, कमरे में जगह नही है, पुरस्कार और सम्मान में जो शील्ड मिली हैं वो रात में जगह प्राप्ति के लिए उधर खिसको दबे जा रहे हैं कहते हुए एक दूसरे से लड़ती हैं । 

         हाॅ हर सम्मान के बाद अपने उद्बोधन में वो एक वाक्य को पिछले कई वर्षों से बोलते आ रहे हैं और वो यह कि आज मैं जो कुछ भी हूॅ उसका श्रेय अम्मा को जाता है । मेरी जानकारी में अपनी अम्मा और अपने बाबूजी को दो ही लोग हर मौके पर याद करते हैं, बाबू जी को याद करने वाले हैं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और अम्मा को याद करने वाले यह हमारे भैया साहब ।

         हम दोनो अक्सर मौका मिलते ही चाय पर चर्चा कर लेते हैं स्थान निर्धारित नही है पर हम दोनो ही होंगे और चर्चा होगी यह निश्चित है, मैंने एक बार चाय की चुस्कियाॅ लेते हुए उनसे कहा भैया आपके साथ के लोग कहाॅ पहुॅच गए और आप...........। मेरी बात को उन्होनें बीच में ही रोक दिया बोले रूको, मुझे बहुत मौके मिले वहाॅ तक पहुॅचने के पर मैंने स्वीकार नही किया। मैने कहा क्यों ? बोले भाई जंगल में मोर नाचा किसने देखा । मैने कहा क्या मतलब ? सुनिएगा भैया का जवाब ध्यान से । वो बोले भाई आज मैं जिस मुकाम पर हूॅ, जितना सम्मान और स्नेह यहाॅ मिल रहा है, यह उन्हीं लोगो के सामने मिल रहा है, जिन्होने मुझे............फुटपाथ पर अखबार बेचते और अन्य छोटे छोटे काम करते देखा था, लगभग 45 साल पहले का ये फुटपाथी अखबार विक्रेता आज जब मंच पर सम्मान प्राप्त कर्ता या अतिथि के रूप में आता है तो सामने बैठे दर्शकों में वही लोग होते हैं जिन्होने मेरा संघर्ष देखा है, जब हाॅल में तालियाॅ बजती है और मैं अपनी अम्मा का नाम लेता हॅू तो मेरी आॅखों में जो चमक होती है, वाणी में जो गर्व होता है, शरीर को जो ऊर्जा मिलती है, वो शायद वहाॅ परदेश में  ना मिलती जहाॅ मैं गया नही। भले ही मैं दौलत नही कमा पाया पर अपने शहर ने जो सम्मान दिया और अपने लोगो ने जो स्वीकार्यता दी है, उसे देखकर और सुनकर अम्मा आज भी स्वस्थ और प्रसन्न है शायद परदेश की कमायी दौलत अम्मा को और मुझे यह गर्व और खुशी नही दे पाती।

       चलिए अब आते हैं इस संस्मरण की प्रासंगिकता पर जिसने मुझे लिखने के लिए विवश किया..........इस कोरोना दौर में पैदल चल रहे मजदूरों और अपने घर आने के लिए परेशान दिख रहे परदेश कमाने गए लोगों की दुर्दशा देखकर, मुझे आदरणीय  भैया की जंगल में मोर नाचा किसने देखा वाली बात याद आ गयी और यह संस्मरण लिख दिया।

        उनका नाम नही लिखा पर यह फुटपाथ पर अखबार बेचना वाला आज वरिष्ठ पत्रकार है, न्यूज रीडर है, भारत के एक बहुत बडे़ पत्रकारिता संस्थान के पूर्व छात्रों के संगठन का पदाधिकारी है। हरदिल अजीज महोदय के वर्णन मात्र से तमाम लोग उन्हें पहचान गए होंगे।

       अगर भैया इसे पढ़े और कोई त्रुटि हो तो मुझे माफ कीजिएगा और सराहनीय लेख हो तो चाय पर चर्चा का आमंत्रण दीजिएगा। सादर सहित।

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