गुरुवार, मार्च 11, 2010
जज्बात
गुनाह कुछ ऐसा किया है मैंने
दोस्त नाम दुश्मन को दिया है मैंने
खुद और खुदा की पहचान सिर्फ
जिंदगी को अकेले ही जिया है मैंने .........दोस्त
मेरे ग़मों से तू हैरान न हो
खुशियों को खुद छोड़ दिया है मैंने ........दोस्त
तेरी दवा भी बेअसर हो गयी
जहर कुछ ज्यादा ही पिया है मैंने ........दोस्त
मिल गयी लाखो खुशियाँ मुझे
नाम खुदा का एक बार लिया है मैंने .........दोस्त
वो भूलकर खुश रहने लगे
याद उनको भी नहीं किया है मैंने ............दोस्त
मिल न जाये सजा गलतियों की
खुद को नादान लिख लिया है मैंने .........दोस्त
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गुनाह कुछ ऐसा किया है मैंने दोस्त नाम दुश्मन को दिया है मैंने खुद और खुदा की पहचान सिर्फ जिंदगी को अकेले ही जिया है मैंने .........दोस्त मेर...
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ढॅूढतेे हो छायीं पेड़ को उखाड़कर, बने हैं कई मकान रिश्ते बिगाड़कर, तालीम भी तुमसे बदनाम हो गयी, पायी है डिग्री जो तुमने जुगाड़कर, ...
दुश्मन को दोस्त समझने की ग़लती पहली बार नहीं की होगी आपने... अक्सर चेहरे की मुस्कुराती हुई लकीरों में छिपी बनावट नहीं समझ पाते हम लोग...
जवाब देंहटाएंआप तो वैसे भी हकीक़त से हैं अनजान ...
इसी लिए हैं नादान
bahut bahut shukriya anwarul bhai aaina dikhane ke liye.
जवाब देंहटाएंnadan