जज्बात


गुनाह कुछ ऐसा किया है मैंने
दोस्त नाम दुश्मन को दिया है मैंने


खुद और खुदा की पहचान सिर्फ
जिंदगी को अकेले ही जिया है मैंने .........दोस्त

मेरे ग़मों से तू हैरान न हो
खुशियों को खुद छोड़ दिया है मैंने ........दोस्त

तेरी दवा भी बेअसर हो गयी
जहर कुछ ज्यादा ही पिया है मैंने ........दोस्त

मिल गयी लाखो खुशियाँ मुझे
नाम खुदा का एक बार लिया है मैंने .........दोस्त

वो भूलकर खुश रहने लगे
याद उनको भी नहीं किया है मैंने ............दोस्त

मिल न जाये सजा गलतियों की
खुद को नादान लिख लिया है मैंने .........दोस्त

टिप्पणियाँ

  1. दुश्मन को दोस्त समझने की ग़लती पहली बार नहीं की होगी आपने... अक्सर चेहरे की मुस्कुराती हुई लकीरों में छिपी बनावट नहीं समझ पाते हम लोग...

    आप तो वैसे भी हकीक़त से हैं अनजान ...
    इसी लिए हैं नादान

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