रोता रहेगा दिल मेरा चैन से सो भी न पाऊॅगा, मेरे दायरे मे कोई भूखा हो तो मैं कैसे खाऊॅगा।......नादान
कलमकार की कलम बड़ी चंचल होती है, जो उसका क्षेत्र नही होता वहाॅ भी पहुॅच जाती है, कुछ कर भले ही न पाए लेकिन लिखने से बाज नही आती, कुछ दिन पहले मेरे अन्दर एक मानसिक द्वंद्व चल पड़ा कि कोरोना के इस दौर में उन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों एंव समाज सेवकों की क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए जिनके क्षेत्र के लोग बेरोजगार हो गए हों और परिवार के सामने भूखों रहने की नौबत आ जाए। बस साहब, उठायी कलम और शेरों वाली दो लाईन लिख डाली, आज अखबार में देखा इन लाईनों को हेडलाईन्स बनते और साथ ही तस्वीर भी छपी उन महानुभावों की जो वास्तव में मानवकल्याण में आगे हैं। धन्यवाद, सम्पादक महोदय और आपकी टीम को आपके अखबार को।