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मई 20, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
लाश से खीच लूँ कफ़न साथियों देश से बड़ा है धन साथियों मंत्री बनकर सब बेच जाऊंगा फिर तुम्हारे हवाले वतन साथियों नादान
शहर की बड़ी पार्टियों में दिखते है चाँद रुपयों के खातिर बिकते है कलम भी शर्मिंदा है उनसे जो कातिल को बेगुनाह लिखते है नादान
अपनों के अरमानो को यूँ कुचल दिया चुपचाप उसने मोबाइल का नंबर बदल दिया nadan