गुरुवार, मई 20, 2010


शहर की बड़ी पार्टियों में दिखते है
चाँद रुपयों के खातिर बिकते है
कलम भी शर्मिंदा है उनसे
जो कातिल को बेगुनाह लिखते है
नादान

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