नादान की नादानी
नीचे जमीं ऊपर आसमान रहने दो, समझदार बनो तुम मुझे नादान रहने दो ।
गुरुवार, मई 20, 2010
शहर की बड़ी पार्टियों में दिखते है
चाँद रुपयों के खातिर बिकते है
कलम भी शर्मिंदा है उनसे
जो कातिल को बेगुनाह लिखते है
नादान
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(शीर्षकहीन)
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मरने के बाद भी हमको खूब सताया गया, मारा रिश्तों ने इल्जाम बीमारी पर लगाया गया। @Nadan 31 Aug 2022
नादानी
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