नादान की नादानी
नीचे जमीं ऊपर आसमान रहने दो, समझदार बनो तुम मुझे नादान रहने दो ।
शनिवार, जुलाई 24, 2010
चार दिन की ज़िन्दगी लुफ्त उठाते रहिये
शहर में अपनी भी पहचान बनाते रहिये
कौन है ज़माने में जिसे गम नहीं
अपनों के बीच यूँही मुस्कराते रहिये
दोस्त दो न रहा
अजब ज़माने का
मंजर दिखाई देता है
जहाँ कल खेत थे
वहां बंजर दिखाई देता है
दुश्मनों की बात क्या
करें नादान
दोस्तों के हाथ में
भी खंजर दिखाई देता है
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