मुख्यमंत्री योगी का पिता की मृत्यु होने पर भी प्रदेश को न छोड़ना एंव अंतिम दर्शन को न जाना एक ऐसी नजीर जिसने रिश्ते को नही सूबे की आवाम को तरजीह दी...................पढ़िए मुकेश नादान की कलम से


          पिता से भी बढ़कर, आपके आवाम से रिश्ते निकले
          हम तो इंसान समझे योगीजी आप तो  फरिश्ते निकले ।...नादान

जी हाँ, ऊपर लिखी मेरी दो पंक्तियाँ बिल्कुल वाजिब हैं सूबे के सबसे बड़े राजनीतिक ओहदे पर बैठे सन्त की शान में जिसने 23 करोड़ प्रदेश की आवाम को कोरोना महामारी से निजात दिलाने के लिए फैसला किया कि वो मरहूम हुए पिता के आखिरी दीदार और जनाजे में शामिल नही होंगे।

20 अप्रैल 2020 को दोपहर को सारे टी0वी0 चैनलों पर एक ही खबर बार बार दिखायी जा रही थी और वो खबर थी दिल्ली के एम्स में भर्ती आनन्द सिंह बिष्ट जी के निधन की, 90 साल के बिष्ट जी पिछले कुछ समय से बीमार थे और उनका इलाज नई दिल्ली के एम्स में चल रहा था ।
कभी कभी व्यक्ति का परिचय व्यक्ति के  व्यक्तित्व से बहुत बड़ा हो जाता है, यह सौभाग्य दिवंगत बिष्ट जी को मिला था अपने पुत्र के सुकर्मों से, जी हाँ देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता थे आनन्द सिंह बिष्ट जिनके देहान्त की खबर से पूरा देश शोकाकुल हो गया था।
पिता के देहान्त की सूचना सुनकर कोई भी विचलित हुए बिना नही रह सकता जो जहां भी होगा जिस भी स्थिति में होगा जल्दी से जल्दी पिता के अंतिम दर्शन करने को रवाना हो जाएगा । लेकिन सर्वसुलभ सुविधा युक्त कोई पुत्र अपने संवैधानिक जिम्मेदारियों के मद्देनजर  यह फैसला ले ले कि वो पिता के अंतिम दर्शन को नही जाएगा तो वाकई वो बहुत ही बड़े जिगर वाला कर्मयोगी होगा।
शायद इस मामले में पहली बार जिम्मेदारी ने रिश्तेदारी को पीछे कर दिया, इसको सही साबित कर दिया है प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विश्वभर में फैले कोरोना महामारी के इस काल में अधिकारियों के साथ पल पल की जानकारी लेकर प्रदेश को इस महामारी से मुक्त कराना उनकी पहली प्राथमिकता है वरना भारतीय राजनीति में आज तक ऐसा उदाहरण नही मिला कि कोई उच्च सरकारी सुविधा सम्पन्न पुत्र अपने संवैधानिक दायित्वों के लिए अपने पिता के अंतिम दर्शन का त्याग कर दे।
20 अप्रैल को मुख्यमंत्री आवास पर अधिकारियों की मीटिंग ले रहे योगी को सूचना मिलती है कि पिताजी का देहान्त हो गया है, एक मिनट से कम समय में भी परिवारजनों से बात करके भारी दिल, नम आँखों एंव भरे गले के साथ फिर प्रदेश की जनता के कल्याण  और कोरोना को हराने की रणनीति की रूपरेखा बनाने में व्यस्त हो गए। मौजूद अधिकारियों ने सिर्फ योगी की भावभंगिमा से ही किसी अनहोनी को भाप लिया था।
मीटिंग समाप्त करके योगी ने अपनी माताजी को सम्बोधित एक पत्र जारी किया जिसमें लिखा कि  पिताजी के कैलाशवासी होने पर मुझे बहुत गहरा दुख और शोक है, अंतिम क्षणों में उनके दर्शन की हार्दिक इच्छा थी, परन्तु प्रदेश के 23 करोड़ जनता के हित के मद्देनजर और अपने कर्तव्यबोध के कारण मै उनके दर्शन न कर सका। कोरोना महामारी को परास्त करने की रणनीति के कारण 21 अप्रैल को उनके अंतिम संस्कार में भाग नही ले पा रहा हॅू। पूजनीया मां आप सभी से अपील है कि लाॅक डाउन का पालन करते हुए कम से कम लोग अंतिम संस्कार में भाग लें। लाॅकडाउन के बाद दर्शनार्थ आऊॅगा।

आखिर में, लाॅकडाउन के मद्देनजर दूरदर्शन के द्वारा पुनः प्रसारित की जा रही महर्षि वाल्मीकि रामायण के एक वाकिए का जिक्र किया जाना प्रासंगिक होगा, वो यह कि प्रभु श्रीराम भी अपने पिता के अंतिम संस्कार में शिरकत नही कर पाए थे, क्योंकि वो उस समय अपने वंश की परम्परा को बचाने और पिता की हुक्म की तामील में दूरस्थ प्रदेश में चैiदह वर्ष के वनवास में थे और आज योगीजी प्रदेश को बचाने और अपने पद की गरिमा को श्रेष्ठता प्रदान करने के लिए अपने पिताजी के प्र्रदेश से दूर हैं। परिस्थितियाॅ योगी जी और प्रभु श्रीराम जी की अलग अलग हैं लेकिन दोनो की सेवा और त्याग एक जैसे ही प्रतीत हो रहे है। रामायण के इसी प्रसंग के  मद्देनजर योगी जी को समर्पित दो पंक्तियाँ:
वो भी शामिल न हो सके थे, पिता के अंतिम संस्कार में,
योगीजी आप दिख रहे हैं मुझे प्रभु श्रीराम से किरदार में।

खबरों से यह पता चला है कि पिता आनन्द सिंह बिष्ट अपने संन्यासी पुत्र मुख्यमंत्री योगी को महाराज कहकर सम्बोधित करते थे, शायद उन्हें पहले ही यह एहसास रहा होगा कि ये महाराज देश के सबसे बडे़ राज्य का महाराज बनकर अपनी सेवा और त्याग से उनका नाम रोशन करेगा। कोटि कोटि नमन मरहूम बिष्ट साहेब को।


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