क्या खुशनसीब दिन था २६ फरवरी २०११ लगभग १५ साल बाद आर एम् लाल कंपनी के श्री निशीथ द्विवेदी से कंपनी के ६० साला समारोह में मुलाकात हुई श्री द्विवेदी के साथ मुकेश कुमार
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ढॅूढतेे हो छायीं पेड़ को उखाड़कर, बने हैं कई मकान रिश्ते बिगाड़कर, तालीम भी तुमसे बदनाम हो गयी, पायी है डिग्री जो तुमने जुगाड़कर, ...
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गुनाह कुछ ऐसा किया है मैंने दोस्त नाम दुश्मन को दिया है मैंने खुद और खुदा की पहचान सिर्फ जिंदगी को अकेले ही जिया है मैंने .........दोस्त मेर...
बधाई मुकेश जी..
जवाब देंहटाएंthanks kaushal sir, i am used to write some poem you may check old post and read its and guide me for betterment.
जवाब देंहटाएंwith regards