मोहब्बत , मदद, तारीफ ढलान पर है ,
नफरत और दुश्मनी पहले पदान पर है ,

खसरा, खतौनी ,रजिस्ट्री सब उसके नाम से ,
पर हक़ नहीं बूढ़े का अपने मकान पर है, 

बहुत ज्यादा न उड़ना कामयाब होकर ,
रुकने न कोई ठिकाना आसमान पर है ,

पढ़ा लिखा उसे और बढ़ी सख्सियत बना ,
अड़ा पूरा घर को उसके कन्यादान पर है ,

बैंक से पैसे निकालने को लगता है अंगूठा ,
काम करता वो किताबों की दूकान पर है,

मिल गयी तरक्की तो काम अपना बताया ,
नाकाम हुआ तो इलज़ाम भगवन पर है,

तेरे सितम क्या बिगाड़ लेंगे मेरा ,
सितमगरो की रहमत पहले ही नादान पर है  

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