आज दिनाक २३ सितम्बर २०२१ को एक आशु कविता प्रतियोगिता में मुझे आईना शीर्षक पर कविता लिखने को मिला था मैंने चार मुक्तक लिखे जो आपके लिए हाज़िर हैं
आईना
आँखे भर आयीं ,
उसका एहसास देखकर
आइना चिटक गया ,
मुझे उदास देखकर
तू कुछ भी हो जा, तेरे अर्दब में न आऊंगा ,
आइना हूँ मैं, तुम जैसे हो, वैसा ही दिखाऊंगा
मैं कितना भी छिपाऊं,
मेरी परेशानियां समझ जाती है
मेरी माँ, मुझे मेरी जिंदगी
का आईना नज़र आती है
क्यों खड़े हो आईने के सामने
श्रृंगार करके ,
हमारी तरह तारीफ नहीं करेगा तुम्हें
बाँहो में भरके
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