लघुकथा ----- Personal Vs Professional

 


01

रामू मिस्त्री समय से डाॅक्टर साहब के घर पहुॅच गया था, वो एक मरीज देख रहे थे । रामू को देखते ही बोले अरे बैठो मिस्त्री अभी चलता हूॅ। रामू बैठ गया। मरीज को डाॅक्टर साहब ने कुछ सलाह दी और कहा कि यह दवा बाजार से ले लेना । मरीज नमस्ते करके चलने लगा, डाॅक्टर अरे यार फीस तो दे जाओ, मरीज बोला डाॅक्टर साहब हम आप बचपन मे एक साथ खेले हैं दोस्त रहे हैं । डाॅक्टर ने कहा अरे भाई यह मेरा पेशा है इसमें दोस्ती को मत लाओ । मरीज बोला अरे तुमने सिर्फ सलाह ही तो दी है दवा तो बाहर से ही लेनी है मुझे। डाॅक्टर ने उत्तर दिया सलाह तो मैं तुम्हें तभी दे पाया ना जब मैं इस काबिल बना, लाओ मेरी फीस 500 रूपए समय बर्बाद मत करो। मरीज मायूस हो गया और फीस देकर चला गया।

02

डाॅक्टर साहब ने रामू मिस्त्री को लगभग एक घंटा  पूरा घर उपर से नीचे तक घुमाया कहाॅ क्या बनेगा उसमे क्या क्या सामान लगेगा कितने दिन लगेंगे कितने लोग काम करेंगे। रामू ने सब कुछ बताया। डाॅक्टर साहब बोले ठीक हैं फिर मिलते हैं, जब शुरू करेंगे तब मैं तुम्हें बुला लुॅगा, कहकर डाॅक्टर दरवाजा बन्द करने लगे। रामू ने कहा सर रूकिए यह लीजिए एक कागज डाॅक्टर साहब की तरफ बढ़ाते हुए रामू ने कहा। डाॅक्टर ने कागज हाथ में लिया और देखते ही उनका चेहरा लाल हो गया यह क्या बदतमीजी है, तुम छोटे लोगों को जरा सा भी लिहाज नही है सम्बन्धों का, तुम्हें कितना काम दिलाया है मैनें यह सब भूल गए। रामू ने कहा डाॅक्टर साहब आपने काम दिलाया तो हमने भी तो अच्छा काम किया तभी तो आपने काम दिलाया। डाॅक्टर बोले यह क्या मतलब हुआ कि जरा सा तुम्हें सलाह के लिए बुला लिया और तुमने मुझे यह 200 का बिल पकड़ा दिया, आपसदारी में यह ठीक है क्या । रामू हॅसकर बोला डाॅक्टर  साहब यह तो हमने आज ही आपसे सीखा है जब आप अपने पेशे की सलाह देने के लिए अपने बचपन के दोस्त से फीस ले सकते हैं तो मैं अपने पेशे की सलाह के लिए फीस क्यों नही ले सकता, आप तो रसीद भी नही देते जिससे सरकार को टैक्स का नुकसान होता है, हम तो रसीद भी दे रहे हैं आपको। डाॅक्टर साहब हम पहले पर्सनल थे पर आपको देखकर प्रोफेशनल हो गए हैं, फीस दीजिए तो मैं भी चलूॅ आपको भी दूसरी क्लीनिक पर जाना होगा। डाॅक्टर निरूत्तर थे।

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