रविवार, जून 21, 2020

हमारा भी बदन दुखता है.................................................

सो गए शांतिलाल, अचानक आयी इस आवाज ने शांतिलाल को नींद के बाॅर्डर से वापस बुला लिया, शांतिलाल ’बोले कौन है’ ?
आवाज फिर आयी- हम हैं शांतिलाल ।
शांतिलाल- अरे हम कौन कोई नाम है तुम्हारा कि नही।
उत्तर मिला- गजब आदमी हो शांतिलाल तुम हमारी आवाज भी नही पहचानते, सारा दिन पैरों से रौंदते हो और आवाज भी नही पहचानते।
शांतिलाल बेचैन होकर उठ गए दरवाजा खोला बाहर झाॅका इधर उधर देखा कोई नही था। दरवाजा बन्द करके खटिया पर आकर बैठ गए।
आवाज फिर आयी- शांतिलाल बोलते क्यों नही ?
शांतिलाल - अरे यार कौन हो सामने क्यों नही आते, क्या भूत प्रेतों के खानदान से हो।
’इधर देखो शांतिलाल’ आवाज फिर आयी।
शांतिलाल टिमटिमाते जीरो वाट के नाईट बल्ब की हल्की रोशनी में भारी मन की तेज आॅखों से  आवाज को तलाश करने लगे।
आवाज को एहसास हो गया कि शांतिलाल सर्च मोड में हैं, शांतिलाल को ज्यादा मेहनत न करना पडे़ इसलिए उनकी मदद के लिए आवाज ने फिर पुकारा इधर देखो शांतिलाल इधर। आवाज की दिशा में देखते ही शांतिलाल चैंक गए और खड़े हो गए और 4जी की स्पीड से बोलने लगे अबे तू भी बोलने लगा होश मे तो है, औकात से बाहर आने पर तुझे डर नही लगा अबे अपने दायरे में रहे अपना काम कर फालतू लफड़े में क्यों पड़ रहा है।
हाॅ शांतिलाल मैं तुमसे इसी विषय पर बात करना चाहता हॅू तुम भी अपने दायरे में रहो अपना काम करो फालतू लफड़े में क्यों पड़ते हो।
शांतिलाल- अबे मैंने क्या बिगाड़ा तेरा जो तुझे मुझे उपदेश दे रहा है।
उत्तर मिला शांतिलाल हमारा जो काम है हमसे वही लिया करो, एक के साथ एक मुफ्त वाली योजना हम पर लागू नही होती है और सुनो हम सदियों से रक्षा करने के लिए जाने जाते हैं न कि हमला करने के लिए हम अहिंसा के पुजारी हैं, तुम अपनी हिंसा में हमें भागीदार मत बनाओ वरना बुरा हो जाएगा। तुम इंसानों ने हमारा जितना उत्पीड़न किया है उतना किसी का नही किया, फिर भी हम तुम्हारी सेवा में लगे हैं।
अबे तेरे ऊपर पैसा खर्च किया है’ शांतिलाल का गुस्सा चरम पर था।
हाॅ पैसा खर्चा किया है जिस काम के लिए वही काम लिया करो वरना तुम्हारे पैरों में काटना शुरू कर दूॅगा तो समझ में आ जाएगी मेरी ताकत क्या है।
शांतिलाल- अरे मुझे उलझाओ नही यह बताओ की तुम चाहते क्या हो ?
अब आए  मुद्दे की बात पर, ध्यान से सुनों शांतिलाल तुम आजकल गुस्से में बहुत रहते हो। बिना सोचे समझे बेटों को मारने लगते हो, तुम्हारे आपसी झगड़े में हमें शर्मिन्दा होना पड़ता है, तुम्हारे इस लफडे़ की वजह से मेरे पूरे बदन में दर्द हो रहा है, इसलिए माफी चाहता हूॅ , अपने गृहयुद्व में हमको शांमिल मत करो। अपनी लड़ाई अपने आप लड़ो ठीक है।
शांतिलाल- अरे यार मैं अपने बेटों का मारूं दुत्कारूं तुमसे क्या मतलब। तुम जूते हो जूते की तरह रहो।
जूता बोला- शांतिलाल तुम हमें पैरों के लिए लाए थे, हाथों के लिए नही, मारने के लिए लाठी डंडा आती है वो खरीदो पर तुम ठहरे महा कंजूस, हमें खरीदा था पहनने के लिए और हमे हथियारों की तरह इस्तेमाल कर रहे हो, तुम बेटों को मारने के लिए हमारा इस्तेमाल करते हो, गुस्से में भी कहते हो जूता मारूॅगा, कुत्ता बिल्ली दिख जाए तो भी चिल्लाते हो मार जूता फेक के। हद है जब देखो हमारा दुरूपयोग करते हो।
शांतिलाल- अरे तुम्हें क्या इससे चोट तो मेरे बेटों को लगती है, विरोध तो उनको करना चाहिए।
तभी दूसरे पैर का जूता बोल पड़ा- अरे यार यह महाकंजूस है, तुम्हें याद है जब यह अपने एक सहयोगी की शादी में गया था, हमें पहनकर हम कितने खुश थे कि अपने तमाम महॅगे सस्ते ब्रांड वाले साथियों से मिलेंगे, लेकिन इन भाई साहब ने खाना खाया और हमें तकिया की तरह इस्तेमाल किया जबकि ज्यादातर लोगो  ने वहाॅ हवा वाला तकिया खरीद लिया था। 
शांतिलाल- चुपकर तू, शादी ब्याह में जूते चोरी हो जाते हैं इसलिए मैने सिरहाने रख लिए था तुझे, तेरी तो शान बढ़ायी मैनें सर के नीचे रखकर तेरी जगह तो पैरों मे है। 
जूता- हाॅ मैं यही बताना चाहता हॅू कि मेरी जगह पैरों में हैं वहीं रहने दो, हमें मारपीट में इस्तेमाल मत किया करो , बदन दुखता है हमारा, कभी सोचा है इस बारे में, तुमने तो हाथ में उठायी और दे दनादन दे दनादन, जिसको मारते हो उसका तो इलाज करा देते हो, पर हमें कभी पूछा है, और दे दनादन दे दनादन के बाद तुरन्त पैरों में पहने लेते हो सौ किलो का वजन रख चल पड़ते हो यह भी नही सोचते की इस्तेमाल के बाद हमें भी थोड़ी देर आराम दे दो।
शांतिलाल- अबे तुम तो ऐसी बात कर रहे हो जैसे तुम्हारा बहुत बड़ा अपमान कर दिया मैनें।
जूता- अरे हमारा क्या अपमान होगा, जूते हैं जूते रहेगें, हम तो समझा रहे हैं कि हमारे चक्कर में अपनी इज्जत कम मत करो वरना रह जाओगे तरसते हुए।
शांतिलाल- मैं समझा नही। काहे को तरसते हुए ।
जूता- अरे भाई बेटों को मारते हो, अगर बेटे गुस्सा हो गए तो समझ लेना सोशल मीडिया पर फोटो नही डालेंगे तुम्हारी, तुम्हारा फादर डे बिना नेटवर्क के मोबाईल जैसा गुजरेगा। समझे।
शांतिलाल कुछ कह पाते इससे पहले उनकी पत्नी ने हिलाकर उठाया चलिए उठिए चाय पी लीजिए सवेरा हो गया। 
शांतिलाल नींद से जाग गए और सपना टूट गया ध्यान से देखा जूते खामोश अपने स्थान पर रखे थे ।

सोमवार, जून 01, 2020

लघुकथा

लघुकथा
01
रामू मिस्त्री समय से डाॅक्टर साहब के घर पहुॅच गया था, वो एक मरीज देख रहे थे । रामू को देखते ही बोले अरे बैठो मिस्त्री अभी चलता हूॅ। रामू बैठ गया। मरीज को डाॅक्टर साहब ने कुछ सलाह दी और कहा कि यह दवा बाजार से ले लेना । मरीज नमस्ते करके चलने लगा, डाॅक्टर अरे यार फीस तो दे जाओ, मरीज बोला डाॅक्टर साहब हम आप बचपन मे एक साथ खेले हैं दोस्त रहे हैं । डाॅक्टर ने कहा अरे भाई यह मेरा पेशा है इसमें दोस्ती को मत लाओ । मरीज बोला अरे तुमने सिर्फ सलाह ही तो दी है दवा तो बाहर से ही लेनी है मुझे। डाॅक्टर ने उत्तर दिया सलाह तो मैं तुम्हें तभी दे पाया ना जब मैं इस काबिल बना, लाओ मेरी फीस 500 रूपए समय बर्बाद मत करो। मरीज मायूस हो गया और फीस देकर चला गया।
02
डाॅक्टर साहब ने रामू मिस्त्री को लगभग एक घंटा  पूरा घर उपर से नीचे तक घुमाया कहाॅ क्या बनेगा उसमे क्या क्या सामान लगेगा कितने दिन लगेंगे कितने लोग काम करेंगे। रामू ने सब कुछ बताया। डाॅक्टर साहब बोले ठीक हैं फिर मिलते हैं, जब शुरू करेंगे तब मैं तुम्हें बुला लुॅगा, कहकर डाॅक्टर दरवाजा बन्द करने लगे। रामू ने कहा सर रूकिए यह लीजिए एक कागज डाॅक्टर साहब की तरफ बढ़ाते हुए रामू ने कहा। डाॅक्टर ने कागज हाथ में लिया और देखते ही उनका चेहरा लाल हो गया यह क्या बदतमीजी है, तुम छोटे लोगों को जरा सा भी लिहाज नही है सम्बन्धों का, तुम्हें कितना काम दिलाया है मैनें यह सब भूल गए। रामू ने कहा डाॅक्टर साहब आपने काम दिलाया तो हमने भी तो अच्छा काम किया तभी तो आपने काम दिलाया। डाॅक्टर बोले यह क्या मतलब हुआ कि जरा सा तुम्हें सलाह के लिए बुला लिया और तुमने मुझे यह 200 का बिल पकड़ा दिया, आपसदारी में यह ठीक है क्या । रामू हॅसकर बोला डाॅक्टर  साहब यह तो हमने आज ही आपसे सीखा है जब आप अपने पेशे की सलाह देने के लिए अपने बचपन के दोस्त से फीस ले सकते हैं तो मैं अपने पेशे की सलाह के लिए फीस क्यों नही ले सकता, आप तो रसीद भी नही देते जिससे सरकार को टैक्स का नुकसान होता है, हम तो रसीद भी दे रहे हैं आपको। डाॅक्टर साहब हम पहले पर्सनल थे पर आपको देखकर प्रोफेशनल हो गए हैं, फीस दीजिए तो मैं भी चलूॅ आपको भी दूसरी क्लीनिक पर जाना होगा। डाॅक्टर निरूत्तर थे।

शुक्रवार, मई 15, 2020

कोरोना काल में प्रासंगिक यह मुहावरा.....................जंगल मे मोर नाचा किसने देखा...........

       मेरे एक बहुत ही करीबी हैं उनसे क्या रिश्ता है मैं आज तक निर्धारित नही कर पाया हूॅ क्योंकि जिस भी रिश्ते के दायरे में उनको लाना चाहता हूॅ उनके व्यक्तित्व के आगे हर रिश्ता छोटा नजर आता है , फिर भी मैं उन्हें भैया कहता हॅू । 

        उनका व्यक्तित्व उनके द्वारा ही निर्मित है, मंचों पर सम्मान प्राप्ति में उनका नाम उनके खानदान में सबसे टाॅप पर है, कमरे में जगह नही है, पुरस्कार और सम्मान में जो शील्ड मिली हैं वो रात में जगह प्राप्ति के लिए उधर खिसको दबे जा रहे हैं कहते हुए एक दूसरे से लड़ती हैं । 

         हाॅ हर सम्मान के बाद अपने उद्बोधन में वो एक वाक्य को पिछले कई वर्षों से बोलते आ रहे हैं और वो यह कि आज मैं जो कुछ भी हूॅ उसका श्रेय अम्मा को जाता है । मेरी जानकारी में अपनी अम्मा और अपने बाबूजी को दो ही लोग हर मौके पर याद करते हैं, बाबू जी को याद करने वाले हैं सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और अम्मा को याद करने वाले यह हमारे भैया साहब ।

         हम दोनो अक्सर मौका मिलते ही चाय पर चर्चा कर लेते हैं स्थान निर्धारित नही है पर हम दोनो ही होंगे और चर्चा होगी यह निश्चित है, मैंने एक बार चाय की चुस्कियाॅ लेते हुए उनसे कहा भैया आपके साथ के लोग कहाॅ पहुॅच गए और आप...........। मेरी बात को उन्होनें बीच में ही रोक दिया बोले रूको, मुझे बहुत मौके मिले वहाॅ तक पहुॅचने के पर मैंने स्वीकार नही किया। मैने कहा क्यों ? बोले भाई जंगल में मोर नाचा किसने देखा । मैने कहा क्या मतलब ? सुनिएगा भैया का जवाब ध्यान से । वो बोले भाई आज मैं जिस मुकाम पर हूॅ, जितना सम्मान और स्नेह यहाॅ मिल रहा है, यह उन्हीं लोगो के सामने मिल रहा है, जिन्होने मुझे............फुटपाथ पर अखबार बेचते और अन्य छोटे छोटे काम करते देखा था, लगभग 45 साल पहले का ये फुटपाथी अखबार विक्रेता आज जब मंच पर सम्मान प्राप्त कर्ता या अतिथि के रूप में आता है तो सामने बैठे दर्शकों में वही लोग होते हैं जिन्होने मेरा संघर्ष देखा है, जब हाॅल में तालियाॅ बजती है और मैं अपनी अम्मा का नाम लेता हॅू तो मेरी आॅखों में जो चमक होती है, वाणी में जो गर्व होता है, शरीर को जो ऊर्जा मिलती है, वो शायद वहाॅ परदेश में  ना मिलती जहाॅ मैं गया नही। भले ही मैं दौलत नही कमा पाया पर अपने शहर ने जो सम्मान दिया और अपने लोगो ने जो स्वीकार्यता दी है, उसे देखकर और सुनकर अम्मा आज भी स्वस्थ और प्रसन्न है शायद परदेश की कमायी दौलत अम्मा को और मुझे यह गर्व और खुशी नही दे पाती।

       चलिए अब आते हैं इस संस्मरण की प्रासंगिकता पर जिसने मुझे लिखने के लिए विवश किया..........इस कोरोना दौर में पैदल चल रहे मजदूरों और अपने घर आने के लिए परेशान दिख रहे परदेश कमाने गए लोगों की दुर्दशा देखकर, मुझे आदरणीय  भैया की जंगल में मोर नाचा किसने देखा वाली बात याद आ गयी और यह संस्मरण लिख दिया।

        उनका नाम नही लिखा पर यह फुटपाथ पर अखबार बेचना वाला आज वरिष्ठ पत्रकार है, न्यूज रीडर है, भारत के एक बहुत बडे़ पत्रकारिता संस्थान के पूर्व छात्रों के संगठन का पदाधिकारी है। हरदिल अजीज महोदय के वर्णन मात्र से तमाम लोग उन्हें पहचान गए होंगे।

       अगर भैया इसे पढ़े और कोई त्रुटि हो तो मुझे माफ कीजिएगा और सराहनीय लेख हो तो चाय पर चर्चा का आमंत्रण दीजिएगा। सादर सहित।

रविवार, मई 10, 2020


लिखने वाले ने लिखी,
हमारी किस्मत कितनी विचित्र है,
माॅ को छीन लिया हमसे,
रह गया पास  माॅ का चित्र है।




मंगलवार, मई 05, 2020

राजा और रंक सब कैद कोरोना में....................

करता तो वो मजदूरी का काम है,
सुना है  पास उसके  डिग्री तमाम है...

हैराॅ हुआ देखकर गरीबों की फेहरिस्त,
गरीबे को छोड़, पूरे मोहल्ले का नाम है...

अमीरों के माॅ बाप नौकरों के हवाले,
ऐ गरीबों के बच्चों तुमको सलाम है...

हो गए बदनाम मन्दिर ओ मस्जिद,
जुबाॅ इंसान की कितनी बेलगाम है...

अपनों की तहरीर पर लिखा मुकदमा,
पुलिस तो बेचारी मुफ्त में बदनाम है...

राजा और रंक सब कैद कोरोना में,
आदमी कुछ नही वक्त का गुलाम है...

मैं पड़ता नही जाति धर्म के चक्कर में,
हिन्दू को नमस्ते, मुस्लिम को सलाम है...

लड़का बिकाऊ है बाप बेच रहा है,
शादी के नाम पर, दस लाख दाम है...

बच्चो ने कर लिया कमरों में कब्जा,
बाप है बाहर, मकान जिसके नाम है...

ये मोहब्बत भी क्या चीज है नादान,
ना उनको सुकून न हमको आराम है।

नादान

Nadan


सोमवार, मई 04, 2020

नादानी

ढॅूढतेे हो छायीं पेड़ को उखाड़कर,
बने हैं कई मकान रिश्ते बिगाड़कर,

तालीम  भी तुमसे बदनाम हो गयी,
पायी है डिग्री जो तुमने जुगाड़कर,

कोई देखे भी  तो  शर्मिन्दा न हो,
इन्सान है तू बस इतनी तो आड़कर,

बढ़ा रही है जो दूरियाॅ इन्सान में,
खत्म कर दो उन किताबों को फाड़कर,

जिसके लिए है नादान उसके नाम कीजिए
रखकर अपने पास ना हुस्न को कबाड़कर ।


नादान

LOCKDOWN .........04052020


कुसूर सारा गरीब का

गजब नसीब उस बदनसीब का निकला,
कातिल उसका, उसके करीब का निकला,
अदालत ने अमीरों को बाईज्जत बरी किया,
जाॅच में कुसूर सारा गरीब का निकला।

शनिवार, मई 02, 2020

आज की ताजा खबर: प्रदेश के सबसे बड़े कोरोना हाॅट स्पाॅट के नाम से चर्चा में आए कैन्ट लखनऊ के सदर बाजार स्थित कसाई बाड़ा क्षेत्र को अपनी मेहनत और सूझबूझ से रात दिन मेहनत करके स्थिति को काबू में करने वाले  पर्दे के पीछे के छावनी परिषद लखनऊ के योद्धाओं से रूबरू कराती खबर..............

कोरोना युद्ध में पर्दे के पीछे के असली हीरो

जी हाॅ, पर्दे पर दिखने वाले हीरो के काम से बड़ा काम होता है पर्दे के पीछे के हीरो का जो दिखायी नही देता पर पर्दे के हीरो का रिमोट उसी के पास होता है,सही मायने में सफलता का असली हीरो यही रिमोटधारी होता है । इस खबर के माध्यम से जानिए प्रदेश के सबसे बड़े कोरोना हाॅटस्पाॅट के कुछ ऐसे ही पर्दे के पीछे के छावनी परिषद लखनऊ के हीरो को जिनकी मेहनत और सेवा से घटने लगी कोरोना पाॅजिटिव मरीजों की संख्या।

चर्चा में आया सबसे बड़ा कोरोना हाॅटस्पाॅट क्षेत्र सदर बाजार का कसाई बाड़ा लखनऊ छावनी में ही स्थित हैं, इस क्षेत्र ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इतने संवेदनशील हाॅटस्पाॅट क्षेत्र के साथ ही सेना के मध्य कमान का मुख्यालय, कमान अस्पताल, बेस अस्पताल, ए0एम0सी0 सेन्टर, जी0आर0 सेन्टर जैसे बड़े सैन्य संस्थानों एंव इनके बंगलों और आवासों  की नियमित सफाई व्यवस्था के साथ ही क्षेत्र को कोरोना प्रसार से बचाने की जिम्मेदारी छावनी परिषद लखनऊ की ही है।

छावनी परिषद लखनऊ के सीईओ अमित कुमार मिश्रा के निर्देशन में कोरोना के खिलाफ चल रहे इस युद्ध में पर्दे के पीछे के वास्तविक हीरो हैं छावनी परिषद के अधिकारी अरून कुमार अवस्थी और मनीष पटेल जो इस कोरोना युद्ध में अपनी सफाईयोद्धाओं की सेना के साथ रात दिन सैन्य और सिविल क्षेत्र को कोरोना से बचाने के लिए अथक प्रयासरत हैं।

कोरोना काल में आज सबसे ज्यादा जरूरत है व्यक्तिगत डिस्टेंसिंग के साथ  सैनिटाईजेशन की इस तस्वीर में अरून कुमार अवस्थी और मनीष पटेल दिखायी दे रहे हैं कोरोना से जंग लड़ने को तैयार कोरोना योद्धाओं की सेना के साथ , खुद की जान को खतरे में डालकर ये कोरोना योद्धा सिर से पाॅव तक खुद को देशभर में तमाम स्थानों पर कोरोना योद्धाओं में शामिल इज्जतकर्मियों ( मोदीजी द्वारा सफाईकर्मियों को दिया गया नाम) की फूल माला पहनाकर, पुष्पवर्षा करके, आरती उतारकर जो सम्मान दिया जा रहा है, सही मायने में यह सभी इसके हकदार भी हैं, इसी तरह का सम्मान छावनी परिषद लखनऊ में रात दिन अपनी सेवाएं दे रहे इज्जतकर्मियों और अन्य सभी का भी होना चाहिए।

 कुशल नेतृत्व के लिए सीईओ अमित कुमार मिश्रा, मौके पर मौजूद रहकर अपनी सेवाओं के साथ स्टाफ का मनोबल ब-सजय़ाने के लिए अरून कुमार अवस्थी , मनीष पटेल, सफाई सुपरवाईजर विजय कुमार, अमर सिंह, रामकुमार सहयोगी मेराज खान, अमरदीप अटल आदि भी प्रशंसा और सम्मान के हकदार हैं।




AVADHNAMA HINDI LUCKNOW PAGE NO.16

बुधवार, अप्रैल 29, 2020

नादानी



दो दिन में ही सदा के लिए दूर हुए,
कल इरफान तो आज ऋषि कपूर हुए।

Chand Aahe Bharega28042020



चाॅद आहें भरेगा फूल दिल थाम लेंगे .........वाह क्या सोच है लिखने वाले की मुकेश साहब का मशहूर गीत मेरी आवाज में, बेटी के जन्मदिन 28 अप्रैल 2020 को रिकार्ड किया मेरे बेटे शिखर और भतीजे अनन्त और अक्षत ने साथ दिया अर्पित एंव पूरे परिवार ने पेश है आपके सामने

Ai Phoolo ki Rani.28042020



रफी साहब एक ऐसा नाम जो लाखों परिवारों की रोजी रोटी का साधन है और गम, खुशी, मोहब्बत हर त्योहारों, हर अवसरों पर उनके गाए गीत आज भी प्रासंगिक हैं। उन्हीं का एक गीत मेरी आवाज में, बेटी के जन्मदिन 28 अप्रैल 2020 को रिकार्ड किया मेरे बेटे शिखर और भतीजे अनन्त और अक्षत ने साथ दिया अर्पित एंव पूरे परिवार ने , पेश है आपके सामने

नादानी

बहुत दूर हर मुश्किल से निकल जाते,
निकालते उन्हें और दिल से निकल जाते,
दुनिया में कोई बुराई न दिखती नादान
गर खुद इश्क की महफिल से निकल जाते।

Sochenge Tumhe pyar kare ki on



श्रद्धांजलि ऋषि कपूर साहब को.....................................................

1992 में एक फिल्म आयी थी दीवाना जिसमें ऋषि कपूर साहब पर एक गााना फिल्माया गया था, गाने के बोल थे सोचेंगे तुम्हें प्यार करें की नही....28 अप्रैल को घर पर ही मैने यह गाना गया और बच्चों ने रिकाॅर्ड करके सोशल मीडिया में पर अपलोड किया। आज सवेरे ही खबर मिली की ऋषि कपूर साहब का निधन हो गया है। पुनः अपलोड है ये गीत ऋषि कपूर साहब को नमन करते हुए।

मंगलवार, अप्रैल 28, 2020

कोरोना योद्धाओं को समर्पित मेरी कविता


कोरोना योद्धाओं को समर्पित मेरी कविता को अवधनामा अखबार ने 
छापकर सम्मानित किया आपका आभार सम्पादक महोदय और आपकी टीम को
लेकिन इन्होनें मुझे नादान मानने से इंकार कर दिया और मुकेश कुमार ही चित्र के साथ छापा है


सोमवार, अप्रैल 27, 2020

जन्मदिन की शुभकामनाएं हमारी बिटिया रानी को,

हम सबकी मुस्कान है बिटिया,
सब रिश्तों की शान है बिटिया,
तुम लायी हो घर मे खुशियाॅ
यह तुम्हारा एहसान है बिटिया।






जन्मदिन की शुभकामनाएं हमारी बिटिया रानी को,
सदा मुस्कुराती रहो, सदा खुशियाॅ मेहरबान रहे,
खूब करो तरक्की बेटा ऊॅची  सबकी शान रहे।......

रविवार, अप्रैल 26, 2020

सुस्ती बनी चुस्ती

आप बीतीः लगभग एक सप्ताह से सवेरे सोकर उठने के बाद सुस्ती सी लगती थी, नींद भी पूरी ले रहा था हाॅ रात में सोने मे देर हो रही थी पढ़ने लिखने की आदत के कारण कभी किताबों से कभी कम्प्यूटर से ज्ञान समेटने के कारण समय से खुद को बिस्तर पर फैलाने में थोड़ी देर हो रही थी, चंचल मन ने सुस्ती का इल्जाम इन्हीं ज्ञान समेटने वाली विधाओं को देकर खुद को निर्दोष साबित कर दिया।
आज सवेरे उठने के लगभग एक घन्टे के बाद चित्त में ताजगी का जो संचार महसूस हुआ उसे शब्दों में बयान नही कर सकता बस आप महसूस कर सकते हैं, यह चमत्कार हुआ सवेरे डिजीटल पेपर पढ़ते पढ़ते रफी साहब, मुकेश साहब, लता जी, मो0अजीज जी, लक्ष्मीप्यारे जी, राजा मेहन्दी अली खाॅ जी के कुछ गााने सुनने के बाद। अब समझ में आया कि सुस्ती का कारण शारीरिक नही मानसिक था जो मनपसन्द गाने सुनकर चुस्ती में तब्दील हो गयी।

कोरोना योद्धाओं का काव्य सम्मान


सुनी हुई सड़कें सारी, आना जाना बन्द हुआ,
तन से उतरी न खाकी, और न थाना बन्द हुआ,

यूॅ ही नही कहते हैं लोग, धरती का भगवान इन्हें,
मन्दिरों मेें ताले लगे,  पर ना दवाखाना बन्द हुआ,

जान जोखिम में डालकर , पूरा देश सम्भालें हैं,
महामारी में सफाईवालों का, ना फर्ज निभाना बन्द हुआ,

मदद गरीबों की करने को, सरकार भी आगे आ गयी,
काम बढ़ा स्टाफ नही , ना बैंकों का खजाना बन्द हुआ

बिजली वाले भी डटे रहे, गैस वाले भी लगे रहे,
टी वी चैनल भी मुस्तैद रहे, अखबार  ना आना बन्द हुआ,

अफसर भी सतर्क दिखे, भोजन राशन बाॅट रहे,
सोशल मीडियाबाजों का, ना इल्जाम लगाना बन्द हुआ,

आटा की दिक्कत हुई पर, डाटा खूब भरपूर मिला,
रामायण दिखा दूरदर्शन का, ना पुण्य कमाना बन्द हुआ,

नादान यह समझ लो तुम  लाॅकडाउन में घर में रहना है
गया नही कोरोना अभी ना यमराज का आना बन्द हुआ ।

बुधवार, अप्रैल 22, 2020

रिश्ते का रिचार्ज कर दिया प्रधानमंत्री जी ने.........................


भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की विधान सभा के माननीय अध्यक्ष व 403 माननीय विधायकों के मुखिया आदरणीय दीक्षित साहब जी का ऊर्जावान लेख


मुख्यमंत्री योगी का पिता की मृत्यु होने पर भी प्रदेश को न छोड़ना एंव अंतिम दर्शन को न जाना एक ऐसी नजीर जिसने रिश्ते को नही सूबे की आवाम को तरजीह दी...................पढ़िए मुकेश नादान की कलम से


          पिता से भी बढ़कर, आपके आवाम से रिश्ते निकले
          हम तो इंसान समझे योगीजी आप तो  फरिश्ते निकले ।...नादान

जी हाँ, ऊपर लिखी मेरी दो पंक्तियाँ बिल्कुल वाजिब हैं सूबे के सबसे बड़े राजनीतिक ओहदे पर बैठे सन्त की शान में जिसने 23 करोड़ प्रदेश की आवाम को कोरोना महामारी से निजात दिलाने के लिए फैसला किया कि वो मरहूम हुए पिता के आखिरी दीदार और जनाजे में शामिल नही होंगे।

20 अप्रैल 2020 को दोपहर को सारे टी0वी0 चैनलों पर एक ही खबर बार बार दिखायी जा रही थी और वो खबर थी दिल्ली के एम्स में भर्ती आनन्द सिंह बिष्ट जी के निधन की, 90 साल के बिष्ट जी पिछले कुछ समय से बीमार थे और उनका इलाज नई दिल्ली के एम्स में चल रहा था ।
कभी कभी व्यक्ति का परिचय व्यक्ति के  व्यक्तित्व से बहुत बड़ा हो जाता है, यह सौभाग्य दिवंगत बिष्ट जी को मिला था अपने पुत्र के सुकर्मों से, जी हाँ देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पिता थे आनन्द सिंह बिष्ट जिनके देहान्त की खबर से पूरा देश शोकाकुल हो गया था।
पिता के देहान्त की सूचना सुनकर कोई भी विचलित हुए बिना नही रह सकता जो जहां भी होगा जिस भी स्थिति में होगा जल्दी से जल्दी पिता के अंतिम दर्शन करने को रवाना हो जाएगा । लेकिन सर्वसुलभ सुविधा युक्त कोई पुत्र अपने संवैधानिक जिम्मेदारियों के मद्देनजर  यह फैसला ले ले कि वो पिता के अंतिम दर्शन को नही जाएगा तो वाकई वो बहुत ही बड़े जिगर वाला कर्मयोगी होगा।
शायद इस मामले में पहली बार जिम्मेदारी ने रिश्तेदारी को पीछे कर दिया, इसको सही साबित कर दिया है प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विश्वभर में फैले कोरोना महामारी के इस काल में अधिकारियों के साथ पल पल की जानकारी लेकर प्रदेश को इस महामारी से मुक्त कराना उनकी पहली प्राथमिकता है वरना भारतीय राजनीति में आज तक ऐसा उदाहरण नही मिला कि कोई उच्च सरकारी सुविधा सम्पन्न पुत्र अपने संवैधानिक दायित्वों के लिए अपने पिता के अंतिम दर्शन का त्याग कर दे।
20 अप्रैल को मुख्यमंत्री आवास पर अधिकारियों की मीटिंग ले रहे योगी को सूचना मिलती है कि पिताजी का देहान्त हो गया है, एक मिनट से कम समय में भी परिवारजनों से बात करके भारी दिल, नम आँखों एंव भरे गले के साथ फिर प्रदेश की जनता के कल्याण  और कोरोना को हराने की रणनीति की रूपरेखा बनाने में व्यस्त हो गए। मौजूद अधिकारियों ने सिर्फ योगी की भावभंगिमा से ही किसी अनहोनी को भाप लिया था।
मीटिंग समाप्त करके योगी ने अपनी माताजी को सम्बोधित एक पत्र जारी किया जिसमें लिखा कि  पिताजी के कैलाशवासी होने पर मुझे बहुत गहरा दुख और शोक है, अंतिम क्षणों में उनके दर्शन की हार्दिक इच्छा थी, परन्तु प्रदेश के 23 करोड़ जनता के हित के मद्देनजर और अपने कर्तव्यबोध के कारण मै उनके दर्शन न कर सका। कोरोना महामारी को परास्त करने की रणनीति के कारण 21 अप्रैल को उनके अंतिम संस्कार में भाग नही ले पा रहा हॅू। पूजनीया मां आप सभी से अपील है कि लाॅक डाउन का पालन करते हुए कम से कम लोग अंतिम संस्कार में भाग लें। लाॅकडाउन के बाद दर्शनार्थ आऊॅगा।

आखिर में, लाॅकडाउन के मद्देनजर दूरदर्शन के द्वारा पुनः प्रसारित की जा रही महर्षि वाल्मीकि रामायण के एक वाकिए का जिक्र किया जाना प्रासंगिक होगा, वो यह कि प्रभु श्रीराम भी अपने पिता के अंतिम संस्कार में शिरकत नही कर पाए थे, क्योंकि वो उस समय अपने वंश की परम्परा को बचाने और पिता की हुक्म की तामील में दूरस्थ प्रदेश में चैiदह वर्ष के वनवास में थे और आज योगीजी प्रदेश को बचाने और अपने पद की गरिमा को श्रेष्ठता प्रदान करने के लिए अपने पिताजी के प्र्रदेश से दूर हैं। परिस्थितियाॅ योगी जी और प्रभु श्रीराम जी की अलग अलग हैं लेकिन दोनो की सेवा और त्याग एक जैसे ही प्रतीत हो रहे है। रामायण के इसी प्रसंग के  मद्देनजर योगी जी को समर्पित दो पंक्तियाँ:
वो भी शामिल न हो सके थे, पिता के अंतिम संस्कार में,
योगीजी आप दिख रहे हैं मुझे प्रभु श्रीराम से किरदार में।

खबरों से यह पता चला है कि पिता आनन्द सिंह बिष्ट अपने संन्यासी पुत्र मुख्यमंत्री योगी को महाराज कहकर सम्बोधित करते थे, शायद उन्हें पहले ही यह एहसास रहा होगा कि ये महाराज देश के सबसे बडे़ राज्य का महाराज बनकर अपनी सेवा और त्याग से उनका नाम रोशन करेगा। कोटि कोटि नमन मरहूम बिष्ट साहेब को।


शुक्रवार, अप्रैल 17, 2020

लालफीताशाही के फेर



सेवा में,
माननीय मंत्री जी
मानव संसाधन विकास मंत्रालय
भारत सरकार, नई दिल्ली

महोदय,
सादर प्रणाम, माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान से प्रेरित होकर, लखनऊ की एक गरीब बच्ची साक्षी पुत्री श्री प्रेम लाल का कक्षा प्रथम में प्रवेश हेतु  फार्म केन्द्रीय विद्यालय लखनऊ में भरवाया था । गरीब, अनुसूचित जाति एंव बेटी होने के बावजूद साक्षी का प्रवेश राईट टू एजूकेशन की कैटेगरी मे नही हो सका।
इसके बाद मैंने स्थानीय स्तर पर सकारात्मक सहयोग न मिलने के कारण इस बच्ची की फीस माफी हेतु माननीय प्रधानमंत्री जी तक निवेदन पहुंचाने के लिए  पीजी पोर्टल पर निवेदन किया जिसका सन्दर्भ नम्बर Grievance Status for registration number : PMOPG/E/2016/0175016 Date of Receipt 25/05/2016 Received By Ministry/Department Prime Ministers Office था।
महोदय, बहुत ही अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केन्द्रीय विद्यालय के जिम्मेदारों ने माननीय प्रधानमंत्री जी से किए गए इस विशेष निवेदन को लालफीताशाही के फेर में डालकर नकारात्मक रूप से  प्रधानाचार्य ने इस जवाब के साथ कि आरटीई के तहत प्रवेश के लिए जो लाटरी डाली गयी थी उसमें आपके पाल्य का नाम नही निकला अतः आरटीई के तहत प्रवेश नही हुआ । अतः फीस माफी की सुविधा नही दी जा सकती है, समाप्त कर दिया। प्रधानाचार्य का जवाब इस मेल के साथ संलग्न है।
महोदय, केन्द्रीय विद्यालयों द्वारा प्रवेश के लिए आए  सभी फाॅर्म आरटीई की लाटरी में शामिल कर रहे हैं, उनकी इस व्यवस्था से सक्षम और नौकरी पेशा के बच्चों का नाम आरटीई की लाटरी में आ जाता है और साक्षी जैसी हजारों बच्चियों जो आरटीई की वास्तविक हकदार हैं, यह सुविधा माननीय प्रधानमंत्री जी से निवेदन के बाद भी नही पा पाती हैं। लाटरी की यह प्रक्रिया आरटीई सुविधा के साथ अन्याय और  गरीब बच्चों को हतोत्साहित करने वाली है।
अतः इस प्रार्थना पत्र के माध्यम से आपसे विनम्र निवेदन है कि सक्षम अधिकारी, केन्द्रीय विद्यालय संगठन को निर्देशित करने की कृपा करें कि 2020-21 की प्रवेश प्रक्रिया से  प्रवेश के लिए आवेदित फाॅर्म में से साक्षी जैसे वास्तविक गरीब बच्चों के फार्म उनके अभिभावकों की आय और स्तर देखकर अलग छाॅटकर उनको ही आरटीई की लाटरी में शामिल किया जाए ताकि आरटीई में पात्र बच्चों का ही प्रवेश हो पाए न कि उनका जोकि फीस देने में सक्षम है।
ऐसा उपाय किए जाने से ही आरटीई सुविधा का सदुपयोग हो पाएगा वरना पात्र बच्चे इस सुविधा से वंचित होते रहेंगे।
कृत्य कार्यवाही से मुझे भी अवगत कराने की कृपा की जाए।

सादर सहित।

निवेदक
मुकेश कुमार
मकान नम्बर 594डी/300,
शिखर भवन,
निलमथा, दुर्गापुरी कालोनी,
लखनऊ 226602

लघुकथा.......नजरिया बदलो


अचानक शुरू हुई तेज बरसात से बचने के लिएा तमाम राहगीर एक बड़े से पीपल के पेड़ के नीचे खड़े हो गए, पेड़ बहुत विशाल और पुराना था उसकी जड़ में एक चबूतरा भी बना था जिस पर लोगों ने कई भगवानो की मूर्तियाॅ भी रख दी थी। बरसात रूकते ही सब लोग पुनः अपनी राह पर चलने के लिए पेड़ के साए से निकलने लगे। बरसात में रूके एक बुजुर्ग अपने साथ खड़े एक छोटे बच्चे का हाथ पकड़ते हुए चबूतरे पर रखे भगवानों के हाथ जोड़ते हुए निकलने लगे। बुजुर्ग के हाथ जोड़ने के कार्य को देख बच्चे को उत्सुकता हुई और उसने प्रश्न किया दादाजी आपने उन मूर्तियों को हाथ क्यों जोड़ा । ‘ बेटा जो मुसीबत में आपका साथ दे हाथ जोड़कर उसका शुक्रिया अदा करना चाहिए, ऐसा हमारे धर्म में कहा गया है।’ बुजुर्ग ने बच्चे को जवाब दिया। बच्चे ने फिर सवाल किया ‘पर अपने धर्म में तो मूर्ति पूजा करना मना है, फिर आपने मूर्तियों के हाथ क्यों जोड़े।’
‘बेटा हमारे धर्म में मूर्ति पूजा करना मना है लेकिन किसी दूसरे धर्म के भगवान का सम्मान करना थोड़ी मना है और अगर तुम्हें लग रहा है कि मैंने मूर्तियों को हाथ जोड़ा तो तुम अपना नजरिया बदल लो।’ बुजुर्ग ने कहा।
बच्चे ने पूछा ‘वो कैसे‘ ?
बजुर्ग ने कहा ‘जब तेज बारिश हो रही थी तो हम बचने के लिए कहाॅ रूके थे’ ? बच्चे ने कहा पीपल के नीचे ।
बजुर्ग ‘ तो बेटा क्या हमें पीपल का शुक्रिया अदा नही करना चाहिए ? करना चाहिए बच्चे ने कहा। तो बेटा समझ लो मैं पीपल के पेड़ को हाथ जोड़कर शुक्रिया किया।
बच्चे ने कहा ‘अच्छा दादाजी मैं समझ गया, हमें सबका सम्मान करना है अगर कहीं धार्मिक पक्ष आड़े आ रहा है तो हमें अपना नजरिया बदल लेना चाहिए।‘
बजुर्ग ने कहा ‘ हाॅ सलीम बेटा। दोनो आपस में बात करते हुए अपनी राह पर चल दिए।

गुरुवार, अप्रैल 16, 2020

Request to the HRD Minister Ji

सेवा में,
माननीय मंत्री जी
मानव संसाधन विकास मंत्रालय
भारत सरकार, नई दिल्ली

महोदय,
सादर प्रणाम, माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान से प्रेरित होकर, लखनऊ की एक गरीब बच्ची साक्षी पुत्री श्री प्रेम लाल का कक्षा प्रथम में प्रवेश हेतु  फार्म केन्द्रीय विद्यालय लखनऊ में भरवाया था । गरीब, अनुसूचित जाति एंव बेटी होने के बावजूद साक्षी का प्रवेश राईट टू एजूकेशन की कैटेगरी मे नही हो सका।
इसके बाद मैंने स्थानीय स्तर पर सकारात्मक सहयोग न मिलने के कारण इस बच्ची की फीस माफी हेतु माननीय प्रधानमंत्री जी तक निवेदन पहुॅचाने के लिए  पीजी पोर्टल पर निवेदन किया जिसका सन्दर्भ नम्बर था।
महोदय, बहुत ही अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि केन्द्रीय विद्यालय के जिम्मेदारों ने माननीय प्रधानमंत्री जी से किए गए इस विशेष निवेदन को लालफीताशाही के फेर में डालकर नकारात्मक रूप से  प्रधानाचार्य ने इस जवाब के साथ कि आरटीई के तहत प्रवेश के लिए जो लाटरी डाली गयी थी उसमें आपके पाल्य का नाम नही निकला अतः आरटीई के तहत प्रवेश नही हुआ । अतः फीस माफी की सुविधा नही दी जा सकती है, समाप्त कर दिया। प्रधानाचार्य का जवाब इस मेल के साथ संलग्न है।
महोदय, केन्द्रीय विद्यालयों द्वारा प्रवेश के लिए आए  सभी फाॅर्म आरटीई की लाटरी में शामिल कर रहे हैं, उनकी इस व्यवस्था से सक्षम और नौकरी पेशा के बच्चों का नाम आरटीई की लाटरी में आ जाता है और साक्षी जैसी हजारों बच्चियों जो आरटीई की वास्तविक हकदार हैं, यह सुविधा माननीय प्रधानमंत्री जी से निवेदन के बाद भी नही पा पाती हैं। लाटरी की यह प्रक्रिया आरटीई सुविधा के साथ अन्याय और  गरीब बच्चों को हतोत्साहित करने वाली है।
अतः इस प्रार्थना पत्र के माध्यम से आपसे विनम्र निवेदन है कि सक्षम अधिकारी, केन्द्रीय विद्यालय संगठन को निर्देशित करने की कृपा करें कि 2020-21 की प्रवेश प्रक्रिया से  प्रवेश के लिए आवेदित फाॅर्म में से साक्षी जैसे वास्तविक गरीब बच्चों के फाॅर्म उनके अभिभावकों की आय और स्तर देखकर अलग छाॅटकर उनको ही आरटीई की लाटरी में शामिल किया जाए ताकि आरटीई में पात्र बच्चों का ही प्रवेश हो पाए न कि उनका जोकि फीस देने में सक्षम है।
ऐसा उपाय किए जाने से ही आरटीई सुविधा का सदुपयोग हो पाएगा वरना पात्र बच्चे इस सुविधा से वंचित होते रहेंगे।
कृत्य कार्यवाही से मुझे भी अवगत कराने की कृपा की जाए।

सादर सहित।

निवेदक
मुकेश कुमार
मकान नम्बर 594डी/300 ए,
शिखर भवन,
निलमथा, दुर्गापुरी कालोनी,
लखनऊ 226602

शनिवार, अप्रैल 11, 2020

रोता रहेगा दिल मेरा चैन से सो भी न पाऊॅगा, मेरे दायरे मे कोई भूखा हो तो मैं कैसे खाऊॅगा।......नादान

कलमकार की कलम बड़ी चंचल होती है, जो उसका क्षेत्र नही होता वहाॅ भी पहुॅच जाती है, कुछ कर भले ही न पाए लेकिन लिखने से बाज नही आती, कुछ दिन पहले मेरे अन्दर एक मानसिक द्वंद्व चल पड़ा कि कोरोना के इस दौर में उन अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों एंव समाज सेवकों की क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए जिनके  क्षेत्र के लोग बेरोजगार हो गए हों और परिवार के सामने  भूखों रहने की नौबत आ जाए।
बस साहब, उठायी कलम और शेरों वाली दो लाईन लिख डाली, आज अखबार में देखा इन लाईनों को हेडलाईन्स बनते और साथ ही तस्वीर भी छपी उन महानुभावों की जो वास्तव में मानवकल्याण में आगे हैं। धन्यवाद, सम्पादक महोदय और आपकी टीम को आपके अखबार को।





शुक्रवार, अप्रैल 10, 2020

किसी मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार, जीना इसी का नाम है.......गायक मुकेश

Shri Amit Kumar Mishra, IDES, CEO, Cantt Board, Lucknow


रोता रहेगा दिल मेरा चैन से सो भी न पाऊॅगा,
मेरे दायरे मे कोई भूखा हो तो मैं कैसे खाऊॅगा।
                                                      नादान

मेरे द्वारा लिखी गयी उपरोक्त पंक्तियाॅ सफेद कमीज में मुस्कुराते हुए हरदिल अजीज अधिकारी जोकि दूसरी तस्वीर में काली कैप और काले अपर पहने रोटी बेलते हुए महोदय पर सटीक बैठ रही है, यह तस्वीर है लखनऊ कैन्ट के सदर बाजार की जहाॅ पर भोजन बैंक में खाना तैयार हो रहा है, रोटी बेलते हुए साहब हैं श्री अमित कुमार मिश्रा जी, आई0डी0ई0एस0, सीईओ, छावनी परिषद, लखनऊ।
01.
लाॅकडाउन के कारण क्षेत्रीय एंव आसपास के जरूरतमन्दों के साथ साथ छोटे और खुदरा काम करने वाले कामगारों को स्वंय के सहयोग से लगातार भोजन उपलब्ध कराने के निःस्वार्थ भाव से भोजन बैंक की स्थापना की शुरूआत की उपाध्यक्ष आदरणीय रूपा देवी जी ने और सहयोग दिया श्री रतन सिंघानिया जी, पूर्व उपाध्यक्ष, श्री अशफाक कुरैशी जी, पूर्व मा0 सदस्य, श्रीमती रीना सिंघानिया जी,मा0 सदस्य, श्री संजय दयाल वैश्य जी,मा0 सदस्य,  श्री अमित शुक्ला जी,मा0 सदस्य,  श्रीमती स्वाति यादव जी, मा0 सदस्य एंव श्री विकास यादव जी, समाजसेवी, इसके अतिरिक्त भोजन बैंक के संचालन में तमाम कारीगर और लेबर निःशुल्क सेवा दे रहे हैं ।
02.
इस भोजन बैंक को संचालित करने में श्री अमित कुमार मिश्रा जी, सीईओ छावनी परिषद, लखनऊ ने प्रशासनिक, आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, शारीरिक, भौतिक,आत्मिक सभी प्रकार का सहयोग प्रदान करके वास्तविक मानवीय सेवा का श्रेष्ठतम उदाहरण प्रस्तुत किया है। यदि हर व्यक्ति में भोजन बैंक संचालित करने वाले आदरणीयों सी सोच आ जाए तोे शायद देश में भूख से कोई मौत नही होगी।
03.
मानव कल्याण की इस अनुपम  सेवा के लिए मुझ जैसे करोड़ो लोग आपको समय समय पर याद करेंगे और जब कभी मानवता की बात चलेगी तो  आप सभी का नाम सबसे प्रथम पंक्ति में लिखा और सम्बोधित किया जाएगा।
सादर सहित। मुकेश नादान 11 अप्रैल 2020

गुरुवार, अप्रैल 09, 2020

जयसंविधान वोट की ताकत ...................

मनुष्य जिन पैरों के सहारे खड़ा होता है और जिस पीठ और नीचे के हिस्से के सहारे लेटता बैठता है उनको ही सबसे ज्यादा नजरअंदाज करता है, उसका पूरा ध्यान चेहरे को चमकाने मे लगा होता है, लेकिन जो पैर उसके जीवन को गतिमान बनाते हैं,  पीठ और नीचे का जो हिस्सा उसको सबसे ज्यादा आराम देते है, उनकी वो सबसे ज्यादा उपेक्षा करता है।
यही हाल हमारे कुछ जनप्रतिनिधियों का है, जिनके वोट से और जिस जनता के लिए उन्हें पद और प्रतिष्ठा मिली है वो उनको नजर अन्दाज करके सारी निष्ठा और समर्पण  राग दरबारी ( इसे आम भाषा में चमचागिरी कहते हैं) के साथ साथ  पार्टी आलाकमान, देश मुखिया, प्रदेश मुखिया और भिन्न भिन्न प्रकार के  मुखियाओं के इर्द गिर्द ही  रहती है।

कोरोना महामारी भी हमारे कुछ जनप्रतिनिधियों के आचरण और व्यवहार को बदल नही पायी, ऐसे महानुभाव के वर्तमान आचरण से प्रेरित होकर ही मतदाता भविष्य के मतदान से उनको हमेशा के लिए इतिहास बना देता है, क्योंकि वोट रूपी पवित्र ताकत अभी भी उस गरीब के पास ही है और रहेगी जिसको आप नजरअंदाज कर रहे हैं, आपकी बेरूखी और लफ्फाजी तो उसके वोट की ताकत को कम नही कर पाएगी लेकिन उसकी बेरूखी आपके रूतबे को धराशयी करने में सक्षम थी, सक्षम है और सक्षम रहेगी।............................जयसंविधान ।

बुधवार, अप्रैल 08, 2020

भय बिन होय न प्रीत.....


भय बिन होय न प्रीत......इन पाॅच शब्दों में गहरा रहस्य छिपा है कि जब भी मनुष्य पर मुसीबत आती है तो वो उस मुसीबत से निजात दिलाने वाले लोगों के लिए कितना संस्कारी और नरम हो जाता है, भले ही सामान्य दिनों में अपशब्दों से लेकर मारपीट करने में पीछे न रहता हो, जब कारगिल का युद्व चल रहा था तो लोगो में सेना के प्रति सम्मान चरम पर था, भले ही फौजी भाई को रेल मे बैठने को सीट न दें, गाॅव मे उनकी जमीन कब्जा कर लें, इस दौर में जो सम्मान उनका मिल रहा था उसमें उनके कर्म से ज्यादा अपनी सुरक्षा नजर आ रही थी।
आज के अखबर में एक तस्वीर छपी, देखी, पढ़ी मन में कुछ विचार आए जो आपके सामने साझाा कर रहा हूॅ, तस्वीर इस लेख के नीचे दिख रही है। कोरोना से लड़ने वाले इज्जतकर्मियों का सम्मान किया गया। (इज्जतकर्मी नाम मोदी जी ने दिया है, हालांकि लोग इस नाम को प्रयोग करने मे इज्जत महसूस नही करते हैं ) इसके अलावा शीतला माता के हाथ में झाड़ू  इज्जतकर्मियों की महत्ता पर प्रकाश डालने के लिए काफी है ।  
यह वो इज्जतकर्मी हैं जो हर मौसम में मौसम के सितम सहता है, महसूस कीजिए आपके गल्ली मोहल्ले और शहर की सलामती के लिए ये खुद को जोखिम में डाले हुए हैं, उसके बावजूद इसे संस्थाएं एंव ठेकेदार कटौती करके तीन तीन महीने बाद वेतन देते है, दो कौड़ी का व्यक्ति भी गाली दे देता है, दबंग क्षेत्रीय व्यक्ति या नेता जरा सी बात पर पूरे खानदान को तौल देता है । कलेजा हिल जाता है जब अखबार में खबर आती है कि 23 साल का कल्लू सीवर में दम    घुटने से मरा, पिछले महीने हुई थाी शादी।
क्या कल्लू का गुनाह यह था कि वो परिवार को चलाने के लिए यह काम करता था या उसका गुनाह यह था कि वो इस काम के अलावा दूसरा काम क्यों नही कर रहा था।
दोस्तों, सम्मान के वास्तविक हकदार यही हैं, सिर्फ कोरोना काल में नही हर काल में, हम सबका जीवन और  सेहत साफ सफाई के वातावरण में ही सुरक्षित हैं, इसलिए आप सब से निवेदन है कि इनको हमेशा इज्जत दीजिए और एक फूल माला से नही अगर आप इसमें से किसी एक के बच्चे को उच्चशिक्षित होने में मदद कर दें तो आपका यह प्रयास समाज और देश के लिए हितकारी होगा। इनमें से कई इज्जतकर्मी तो ऐसे हैं जो यह सपना देखते हैं कि उनके बच्चे भी पढ़ लिखकर कुछ बन जाएं, इनके बच्चे योग्य भी है, लगनशील भी हैं, कमी है तो बस मार्गदर्शन की। अब गेंद आपके पाले में हैं कि आप मौकापरस्त हैं या वास्तविक और निरंतर इज्जत देने वाले।
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आज तक वेतन न लेने वाले मंत्री रविन्द्र जायसवाल UTTAR PRADESH

आज तक वेतन न लेने वाले मंत्री रविन्द्र जायसवाल की तारीफ

बैठक में यह बात भी सामने आई कि स्टांपए न्यायालय शुल्क एवं पंजीयन राज्यमंत्री ;स्वतंत्र प्रभार रविन्द्र जायसवाल ने विधायक बनने के बाद से अब तक कभी वेतन नहीं लिया है। इस पर मुख्यमंत्री सहित अन्य मंत्रियों ने उनका आभार जताया। रविन्द्र पिछले आठ वर्ष से विधायक हैं। वह अपना पूरा वेतन मुख्यमंत्री के राहत कोष में जमा करते रहे हैं।

नकली गरीब बनाम असली गरीबः लाॅकडाउन के हवाले से





फिर नकली ने असली को पछाड़ दिया, मौका था महामारी कोरोना से दिक्कतों में आए परिवारों की मदद करने का, रमेश रावत एडवोकेट जी ने अपने पास से लगभग 400 लोगों के लिए आटा, चावल, तेल, दालें, साबुन आदि सामग्री  दो पैकेटों में तैयार करवायी, कई दिन गली गली घूमकर वास्तविक जरूरतमंद लोगों की सूची बनायी और उन्हें उनके घर पर ही पर्ची वितरित कर दी गयी ताकि पात्र परिवार की सुव्यस्थित मदद की जा सके।
(2)
दिनांक 7 अप्रैल 2020, दिन मंगलवार, नई बस्ती निलमथा के बाबा साहब की मूर्ति वाले प्रांगण को वितरण स्थल के रूप में उपयोग किया गया,  सवेरे नौ बजे से ही जरूरतमंदों का आना शुरू हो गया, लगभग एक एक मीटर की दूरी पर गोले बनाए गए थे, वितरण टेबल के पास ही एक व्यक्ति पर्ची लेकर रजिस्टर में मिलान करता और सामग्री देने के लिए कह देता, उससे पहले एक व्यक्ति हाथों का सैनेटाईजर भी करवा रहा था, प्रांगण में कुर्सियाँ पड़ी थी, आसपास के लगभग सभी वर्गों और समुदाय के लोग जाति धर्म, पद प्रतिष्ठा, दल राजनीति, अमीरी गरीबी सबसे ऊपर उठकर इस मानवता को समर्पित आयोजन में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे, प्रमुखतः देवेन्द्र धुसिया जी, रामस्वरूप जी, रामसेवक जी,  विजय कुमार जी,  एडवोकेट अनिल जी,  चन्दर जी,  छोटू जी,  सुरेश रावत जी, संजय कुमार जी आदि। कुछ चेहरे जिनके नाम मै नही जानता वो भी सेवा मे लगे थे।
वाल्मीकि आश्रम सेवा समिति भगवन्त नगर निलमथा लखनऊ के पदाधिकारियों को भी उनके सामाजिक योगदान को देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग के अनुपालन में आमंत्रित किया गया था,  जिसमें प्रमुखतः महामंत्री चन्द्रकुमार वाल्मीकि जी सेवानिवृत्त समीक्षा अधिकारी, मदन प्रभु जी, सुरेश फौजी जी भी उपस्थित थे।
(3)
डाटा के माध्यम से चावल आटा बॅटने की ये खबर यानि सोशल मीडिया के इस दौर में क्षेत्र में जगल में आग की तरह फैल गयी कि मुफ्त राशन बाँटा जा रहा है। मुफ्त नाम से मुहब्बत हो जाना मानव की पहली प्राथमिकता है, ऊपर से नीचे तक जो जहाँ पर विराजमान है वो मुफ्तमय होने को अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है।
अभी तक यह भूमिका थी, पिक्चर अब शुरू होने वाली है, ध्यान से पढ़कर कमेन्ट करिएगा की क्या मैं आँखों देखे हाल का सन्तुलित विश्लेषण कर पाया हॅू या नही ?
(4)
दो युवा लड़के जिनकी आयु लगभग 18 से 20 साल की होगी लगभग एक लाख मूल्य वाली लाल रंग की बाईक से आए, उनमें से एक लड़का फिल्मी हीरों की तरह सड़क किनारे गाड़ी खड़ी करके अपने सिर के सो रहे बालों को अपने हाथों से कई बार जगाता रहा और विभिन्न प्रकार की मुख मुद्रा बनाकर चारों तरफ ऐसा देखता है मानो कि वो किसी दूसरे ग्रह का निवासी हो,  दूसरा लड़का रमेश जी के पास आया उनके एक तरफ चन्द्रकुमार वाल्मीकि जी दूसरी तरफ मैं बैठा था,  लड़के ने जेब से पर्ची निकाली और कहा अंकल ये मेरी पर्ची है, मेरा दोस्त भी बहुत गरीब है उसकी भी पर्ची बना दीजिए, रमेश जी ने प्रश्न किया दोस्त कहॅा है ? उस लड़के ने बाईक सवार की तरफ ईशारा किया वो है। चन्द्रकुमार जी और मैं एक से डेढ़ लाख मूल्य की बाईक पर आए उस गरीब को देखकर हैरान हो गए । हालांकि बाईक सवार गरीब को राशन नही मिला और न ही मिल सकता था क्योंकि यहाँ सब पूर्वनियोजित पर्ची व्यवस्था थी।
(05)
कुछ शक्ल से ही गरीब दिखने वाले लोगों को जिनका नाम सूची में नही था शाम को आने को कहा गया ताकि सूचीबद्व लोगों के बाद उन्हें उपलब्धता के अनुसार समायोजित किया जा सके। मैने रमेश जी को एक सुझाव दे दिया और उन्होने मान लिया, सुझाव यह था कि जो लोग बिना पर्ची के आ रहे हैं उनका नाम लिख लिया जाए और शाम को उन्हें इसी वरिष्ठता से राशन दे दिया जाएगा। मेरा यह सुझाव ठहरे हुए पानी में कंकड़ मारने जैसा अनुपयोगी साबित हुआ । मौके की नजाकत को देखते ही उपलब्ध अवसर का नाजायज फायदा उठाते हुए एक साहब ने तो पूरे मोहल्ले और परिवार के सारे लोगों का नाम लिखवा दिया, थोड़ी देर में वो सभी नामजद लोग वितरण स्थल पर पधार भी गए। आखिरकार नाम लिखने का मेरा यह सुझाव तत्काल प्रभाव से बन्द करना पड़ा। इस बीच समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष श्री जयसिंह जयन्त भी पधारे, अपने हाथों से कुछ जरूरतमन्दों को राशन वितरण किया और उन्होनें रमेश जी की व्यवस्था की भूरि भूरि प्रशंसा भी की।
(6)
आईए, आगे चलते हैं, गरीबी तो शक्ल और पहनावे से ही झलकती है, यहाँ एक माताजी आयी जो ठीकठाक ब्रांड के वस्त्र पहने थी, माँग में चौड़ा भरा सिन्दूर गवाह था कि उनके यहाँ पति महाराज किसी न किसी तरह से घर चला ही रहे होंगे,  श्री रमेश जी से उन्होंने तत्काल कोटे के तहत अपना नाम दर्ज कर राशन के पैकेट दिए जाने का फरमान सुनाया, जोकि रमेश जी ने यह कहकर मना कर दिया कि यह सिर्फ गरीबों के लिए है। इस पर माताजी का जवाब बिल्कुल झन्नाटेदार था, यहाँ कौन गरीब है बताओ ? इस सवाल के जवाब में रमेश जी ने हाथ जोड़कर सर झुका लिया।
(7)
इसके अलावा कुछ महिलाएं सोलह श्रृंगार से आगे निकलकर लगभग बीस बाईस श्रृंगार तीन तीन बिछिए, दो दो मंगलसूत्र एक सोने का एक आर्टिफिशियल  और तमाम आधुनिक आभूषणों और फैशन से सुसज्जित साड़ियों के साथ  भी राशन प्राप्ति वाली पंक्ति में लगी थीं और वो अकेली नही दो चार अपने स्टेटस वाली सहेली भी साथ लायीं थीं। ये महिलाएं अमीर तो नही थीं लेकिन मेरे अनुमान से ये गरीब भी कतई नही थी। मेरे पास में बैठे एक सज्जन ने मुझसे ही सवाल किया भाई क्या ये गरीब हैं, मैंने कहा हाँ भाई, मुफ्त का चन्दन, घिस मेरे नन्दन वाली श्रेणी के गरीब है ये।
(8)

ओशो ने अपने एक लेख मे लिखा था कि इस देश को नकली चीजों ने ही बर्बाद रखा  है, नकली दवा, नकली गरीब, नकली नेता, नकली रिश्ते आदि इसी लेख को याद करके मैंने  इस संस्मरण को लिखा है,  इसका उद्देश्य  यह है कि हम नकली गरीब बनकर कब तक असली गरीबों  का हक मारते रहेंगे और असफल हो जाने पर आयोजक से ही सवाल करेंगे कि यहाँ गरीब कौन है ? रमेश जी जैसे समाज सेवी या सरकार से आँख मिचैाली खेलकर कुछ रूपयों का राशन लेकर हमारा जीवन कट जाएगा क्या ? कई लोग आलोचना करते दिखे और उनकी आलोचना का आधार था उनका नाम सूची में नही होना, हम त्याग, बलिदान और सेवा सिर्फ दूसरों से चाहते हैं खुद से नही, मुफ्त से मुहब्ब्त करके हम असली गरीबों का हक मार रहे हैं ।
अंततः मैने मौके पर जो देखा वो लिखा है, इस पोस्ट को सिर्फ मानवता के चश्में से पढ़ा जाए न कि अन्य से फिर भी जो लोग किसी और चश्में से पढ़ना चाहते हैं वो पढ़ सकते हैं यह उनका अपना अधिकार है, मैं अपने सीधे लिखने के लिए जिम्मेदार हॅू आपके उल्टे समझने के लिए नही । सादर सहित।
लेखक मुकेश नादान। दिनांक 8 अप्रैल 2020, बुधवार, लखनऊ